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उपदेश-प्रासाद - भाग १ नमस्कार कर, किनको ? अचिरा और विश्वसेन के पुत्र उन सोलहवें जिन शांतिनाथ को । कौन-से लक्षणवाले शांतिनाथ को ? अर्थात् चौसठ इन्द्रों की श्रेणियों से, राजाओं से, नागेन्द्रों से, विद्याधरराजाओं से तथा मृगेन्द्र के समूहों से प्रणाम कीये हुए उन शांतिनाथ को । पुनः कैसे शांतिनाथ को ? अतिशयों से युक्त अर्थात् अपायापगम आदि कहे जानेवाले चौतीस प्रकार के अतिशयों से युक्त उन शांतिनाथ को प्रणाम कर, इस प्रकार यह श्लोकार्थ है।
यहाँ पर अतिशयों से युक्त शांतिनाथ को, इस प्रकार के विशेषण से चौतीस अतिशय सूचित कीये गये हैं और वें ये अतिशय पूर्व सूरियों के द्वारा कही हुई गाथा के द्वारा लिखे जाते हैं,
जन्म से लेकर चार अतिशय और कर्म-क्षय के हो जाने पर ग्यारह तथा देवों से उत्पन्न उन्नीस अतिशय, इस प्रकार मैं चौतीस अतिशय युक्त प्रभु को वंदन करता हूँ।
वे अतिशय इस प्रकार से हैं- तीर्थंकर का शरीर लोकोत्तर अद्भुत रूप से युक्त, रोग-रहित, पसीने और मल से रहित होता है, यह प्रथम अतिशय है । तथा तीर्थंकरों का श्वासोच्छ्वास कमलपरिमल के समान मनोहर सुगंधवाला होता है, यह द्वितीय अतिशय है । और अरिहंतों के मांस तथा रुधिर गाय के दूध के समान अत्यंत सफेद होते हैं, यह तीसरा अतिशय है । तथा भगवंतों के द्वारा कीये जाते आहार-नीहार माँस से युक्त नेत्रवालों को दीखायी नहीं देते हैं, पुनः अवधि आदि ज्ञान दर्शनवालें पुरुषों को ऐसा नहीं है, यह चौथा सहज अतिशय है । इस प्रकार ये चारों अतिशय जिनेश्वरों को जन्म से ही होते हैं।
अब कर्मक्षय से उत्पन्न अर्थात् ज्ञानावरणीय आदि चार घाति-कर्मों के क्षय से उत्पन्न हुए ग्यारह अतिशय कहे जाते हैं । वहाँ