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उपदेश-प्रासाद - भाग १ सभा में सूर्य सदृश सूरि ने भी स्वर्ग को अलंकृत किया। विशेष से यह संबंध पूर्व सूरियों के द्वारा कीये हुए चतुर्विंशति प्रबन्ध प्रकरण से जाने । प्रभावक चरित्र में भी विस्तार पूर्वक कथानक है।
दुर्बोध्य आम राजा को प्रतिबोधित कर, कवित्व आदि गुणों से ब्राह्मण नीचे कीये गये थे । चतुरों में चक्रवर्ती सदृश बप्पभट्टिसूरि-राज ने उन्नति कर स्वर्ग के सुख को प्राप्त किया था।
___ इस प्रकार उपदेश-प्रासाद में तृतीय स्तंभ में पैंतीसवाँ व्याख्यान संपूर्ण हुआ।
छत्तीसवाँ व्याख्यान अब पाँच भूषणों के वक्तव्यता में आद्य भूषण लिखा जाता
धर्म के अंग इनके द्वारा भूषित कीये जातें हैं, इसलिए भूषण कहें जातें हैं । वहाँ देव आदि से अक्षोभ्यत्व, वह आद्य स्थैर्य-भूषण
इस विषय में सुलसा चरित्र का कीर्तन किया जाता हैं
सुलसा ने ऐसे सम्यग् दर्शन को प्राप्त किया था, जिससे प्रभु ने भी उसे प्रमाण पूर्वक प्रतिष्ठा को दी थी । जैसे हर के मस्तक ऊपर चन्द्र-कला, केतकी-माला और गंगा तीनों ही शोभते हैं लेकिन नैर्मल्यता से चन्द्र-कला और केतकी माला गंगा की तुलना को प्राप्त नहीं करते हैं। वैसे सुलसा जैसी दर्शन निर्मलता दूसरों में नहीं ।
चार वर्णों के अनेक जनों से भरे हुए और श्रेष्ठियों से विराजित रम्य राजगृह में श्रेणिक राज्य कर रहा हैं । वहाँ पर नाग सारथि की प्रिया सुलसा थी । एक दिन अन्यों के पुत्रों को देखकर शोक सहित