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उपदेश-प्रासाद - भाग १ पूज्य ने प्रधानों को भेजा । गुरु के द्वारा कहे हुए को उन मंत्रियों ने कान्यकुब्ज के राजा से कहा । उसे सुनकर राजा उत्साह से युक्त हुआ ऊँट के ऊपर सवार होकर उस नगर को प्राप्त किया । प्रातः काल में धर्म राजा आदि से संकुलित सभा में स्थगीधर रूपधारी आम बहुत मनुष्यों से युक्त आता हुआ देखा गया । तब सूरि ने धर्मराजा से कहा- ये आम राजा के पुरुष निश्चय से हमें बुलाने के लिए आ रहे है। जब वह आगे आया तब सूरीश ने कहा कि- हम आ रहे है । सन्मानित कीये हुए राजा के आसन के ऊपर बैठ जाने पर गुरु ने विज्ञप्ति से युक्त दूत को धर्मराजा को दिखाया । धर्म ने दूत से पूछातेरा राजा कैसा रूपवाला है ? उसने कहा - जो यह स्थगीधर है, उसके समान हैं।
__ बिजोरे को हाथ में धारण कीये हुए दूत से सूरि ने पूछा कि तेरे हाथ में क्या है ? उसने स्पष्ट कहा कि- बिजोरा है । तुवेर के पत्र को दिखाकर तथा स्थगीधर को आगे कर दूत ने उन सूरि से कहा कि यह तुवेर का पत्र हैं । इस प्रकार से श्लेष से अर्थ कहने पर भी धर्म ने ऋजुपने से उसे नहीं जाना । पश्चात् उठकर राजवेश्या के घर पर आम कंगन देकर रहा । प्रातः उसके घर से निकलकर द्वितीय कंगन राजद्वार पर छोड़कर चला गया । इस ओर गुरु ने धर्म के आगे कहा किहे राजन् ! हमारी प्रतिज्ञा पूर्ण हुई है, इसलिए हम यहाँ से जायेंगें । कैसे ? इस प्रकार राजा के पूछने पर आम यहाँ पर आया था, इत्यादि स्वरूप जैसे हुआ था वह उससे कहा । उतने में ही वेश्या और द्वारपाल ने राजा के आगे दो कंगन रखें । तब धर्म ने कहा कि- हे गुरु ! मैं वचन के छल से छलित किया गया हूँ । राजा से पूछकर सूरि आम के साथ में गोपशैल में गये।
एक दिन वहाँ गायक वृन्द आया था। वहाँ एक चाण्डाल की