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________________ उपदेश-प्रासाद - भाग १ १६७ करना ? यदि हम तुझ श्रीमान् के मणि हैं और यदि तुमसे प्रतिष्ठा को प्राप्त की हैं, तब कौन शृंगार-परायण राजा हमको मस्तक पर धारण नहीं करेंगें? श्री गुरु ने गौड़देश को प्राप्त किया । वहाँ पर धर्म राजा था । जब तक आम राजा स्वयं ही बुलाने के लिए नहीं आता है, तब तक विहार नहीं करूँगा, इस प्रकार से प्रतिज्ञा कर सूरि राजा के आग्रह से स्थित हुए । अब आम उस काव्य को देखकर दुःखी हुआ । ____एक बार राजा ने वन में से काले सर्प के मुख को दृढ मुट्ठि के मध्य में कर और वस्त्र से ढंक्कर-शस्त्र, शास्त्र, कृषि और विद्या के बिना जो जिससे जीवित रहता है । इस प्रकार की समस्या को सभा में पंडितों के आगे पूछी । राजा के अभिप्राय से कोई भी इस समस्या को पूर्ण नहीं कर सका । राजा ने पटह बजवाया कि- जो मेरे अभिप्राय से इसे पूर्ण करेगा, उसे मैं लाख स्वर्ण टंक दूंगा । तब एक द्यूतकार ने वहाँ गौडदेश में जाकर सूरि से पूछा । सूरि ने कहा कि- काले सर्प के मुख के समान अच्छी प्रकार से ग्रहण करना चाहिए । उसने आम के आगे संपूर्ण श्लोक को कहा । राजा ने उस द्यूतकार से आग्रह से पूछा कि- किसने इस समस्या को पूर्ण किया हैं ? तब उसने सत्य कहा। उसे सुनकर पश्चात्ताप से युक्त राजा ने गुरु को बुलाने के लिए प्रधानों को भेजा और यह सन्देश दिया कि- मैंने छाया के लिए सिर के ऊपर धारण कीये थे, लेकिन वें पत्र भी भूमि के ऊपर गिर पड़े हैं। पत्रों का यह पतन का स्वभाव है, श्रेष्ठ वृक्ष क्या करें ? इत्यादि प्रधानों के मुख से सुनकर गुरु ने कहा कि- तुम राजा को यह सुनाना यदि हमारे साथ तुम्हारा कार्य हो तो शीघ्र से धर्म राजा की सभा में गुप्त रीति से आकर स्वयं ही पूछो । जिससे कि हम प्रतिज्ञा के निर्वाह होने पर तेरे समीप में आये । इस प्रकार की शिक्षा के साथ
SR No.006146
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandsuri, Raivatvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages454
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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