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उपदेश-प्रासाद भाग १
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सूरि ने राज सभा को अलंकृत किया । तब शासन की महाप्रभावना हुई थी ।
इस प्रकार से मानतुङ्गसूरि का उदाहरण हुआ । अब अन्य बप्पभट्टिसूरि का प्रबन्ध कहा जाता है
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मोढर में श्रीसिद्धसेनसूरि वीर भगवान् को नमस्कार करने के लिए आये हुए थें । छह वर्षीय एक बालक उनके समीप में आया । सूरि के द्वारा पूछने पर उस बालक ने अपने स्वरूप को कहा कि- मैं पञ्चाल देश में डुंबाधि वास्तव्य बप्प क्षत्रिय और भट्टी पत्नी का पुत्र सूरपाल नामक हूँ ।
एक दिवस शत्रुओं को मारने के लिए तैयार होते हुए मुझे निषेध कर पिता स्वयं शत्रुओं को मारने लगें । बाद में माता को पूछे बिना मैं यहाँ पर आ गया। उसे सुनकर इसका मानुष्य तेज नहीं है किंतु यह कोई देव का अंश हैं, इस प्रकार से सोचकर गुरु ने कहा किहे वत्स ! तुम हमारे पास में रहो । वहाँ पर स्थित हुआ वह बालक प्रतिदिन हजार अनुष्टुपों को पढ़ने लगा । संतुष्ट हुए गुरु ने उसके माता-पिता से प्रार्थना कर उस बालक को दीक्षित किया । तब माता-पिता की प्रार्थना से उसका बप्पभट्टि नाम किया ।
एक दिन गुरु प्रदत्त देवी मंत्र के जाप से सरस्वती उसे वर देकर तिरोहित हुई । एक दिन गोपगिरा का स्वामी ऐसे, यशोवर्म राजा का पुत्र आम पिता की शिक्षा-वश से क्रोधित हुआ वहाँ देव-कुल में रहे हुए बप्पभट्टि के समीप में आया । वहाँ देवकुल में आम ने बप्पभट्टि के समीप में प्रशस्ति काव्यों को पढ़ें । उसके साथ उपाश्रय में आया । गुरु के द्वारा पूछने पर उसने अपने संबंध को कहा और खड़ी से स्व नाम आम का ज्ञापन किया । तब गुरु की आज्ञा से वह बप्पभट्टि के साथ में शास्त्रों को पढ़ने लगा ।