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उपदेश-प्रासाद - भाग १
१५६ सुनकर हर्ष सहित राजा पंडितों के साथ महोत्सव पूर्वक मुनि के संमुख गया । गुरु नगर में लाये गये । वहाँ गुरु ने निर्वाण कलिका प्रश्न प्रकाश आदि शास्त्रों का निर्माण किया । राजा जैन हुआ। सभी ब्राह्मण स्व मद को छोड़कर गुरु चरण रूपी कमल में भ्रमर के समान हुए । सूरि शासन की प्रभावना कर श्रीशजय के ऊपर दाँतों की संख्या के उपवास के अनशन से ( अर्थात् बत्तीस उपवास ) स्वर्ग को प्राप्त किया।
__ कान रूपी पात्र से पीने योग्य और अमृत से भरपूर पादलिप्त मुनिराज की यह कथा है, जिन अंजन आदि कांतिमंत गुणों से शासन की महिमा की थी।
इस प्रकार उपदेश-प्रासाद में तृतीय स्तंभ में तेंतीसवाँ व्याख्यान संपूर्ण हुआ।
चौतीसवाँ व्याख्यान अब कवि प्रभावक का स्वरूप कहा जाता है
यदि अति-अद्भुत कवित्व की कृति में शक्ति हो तो वह सम्यक्त्व में कवि नामक आठवाँ प्रभावक कहा गया है।
दो प्रकार से कवि हैं । सद्भूतार्थ कवि और असद्भूतार्थ कवि। वहाँ प्रथम जिन-मत रहस्य के जानपने से सद्भूतार्थशास्त्र की संरचना करनेवाले, जैसे कि - श्रीहेमचन्द्रसूरि त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र और व्याकरण आदि तीन करोड़ ग्रन्थों के कर्ता हैं । तथा उमास्वाति वाचक पुंगव तत्त्वार्थ आदि पाँच सो प्रकरणों के प्रणेता है । तथा वादी देवसूरि चौरासी हजार श्लोक प्रमाण स्याद्वाद रत्नाकर के कर्ता हैं । श्रीहरिभद्रसूरि चौदह सो और चुम्मालीस ग्रन्थों