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उपदेश-प्रासाद
भाग १
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जानकर अनशन के द्वारा स्वर्ग को अलंकृत किया । संघ ने उनके गच्छ के उस वृत्तान्त को ज्ञापन करने के लिए वाक्पटु भट्ट को चित्रकूट में प्रस्थापित किया । उनके गच्छ में पुनः पुनः श्लोक के पूर्वार्ध को पढने लगा, जैसे कि
वादी रूपी जुगनू अब दक्षिण-पथ में चमक रहें हैं । तब सिद्धसारस्वता सूरि की बहन ने कहानिश्चय से वादी सिद्धसेन दिवाकर अस्त हो चुके हैं ।
पश्चात् भट्ट ने अच्छी प्रकार से कहा ।
वादी ऐसे श्रीवृद्धवादी गुरु और सिद्धसेन के नाम को सुनकर तर्क के जानकार भी अवश्य ही मद को छोड़ देतें हैं, जैसे कि श्रेष्ठ हाथी के शत्रु ऐसे सिंह के शब्द को सुनकर अवश्य ही हाथी मद को छोड़तें हैं ।
इस प्रकार से संवत्सर - दिन परिमित उपदेश - संग्रह नामक उपदेश - प्रासाद की वृत्ति में इस द्वितीय स्तंभ में उन्तीसवाँ व्याख्यान संपूर्ण हुआ ।
तीसवाँ व्याख्यान
अब निमित्त का स्वरूप लिखा जाता हैं
जो शासन की उन्नति के लिए अष्टांग निमित्तों का प्रयोग करता है, वह चतुर्थ प्रभावक होता है ।
इस विषय में भद्रबाहु - स्वामी का उदाहरण है और वह इस प्रकार हैं
दक्षिणपथ में प्रतिष्ठानपुर में चतुर ऐसे भद्रबाहु और वराहमिहिर इन दोनों भाईओं ने यशोभद्र गणधर (आचार्य) के