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________________ उपदेश-प्रासाद भाग १ १४२ जाति-स्मरण ज्ञान प्राप्त किया और गुरु के समीप में जाकर पूछाक्या आप उस विमान से यहाँ आये हो ? आर्य सुहस्ती ने कहासर्वज्ञ के वचन से हम उस विमान के स्वरूप को जानतें हैं । उसने कहा- किससे वह विमान प्राप्त किया जाता हैं ? गुरु ने कहा- चारित्र से। यह सुनकर उसने दीक्षा को ग्रहण की। सदा तप से असमर्थ हुए बड़े श्मशान में अनशन के द्वारा स्थित हुए । तब पूर्व-भव की अपमानित की हुई पत्नी सियाली हुई शिशु से युक्त वहाँ पर आयी । तीन प्रहरों से भक्षण कीये जाते हुए चौथे प्रहर के हो जाने पर उस विमान में गये । उस वैराग्य से भद्रा ने एक गर्भवती वधू को छोड़कर शेष वधूओं के साथ में प्रव्रज्या ग्रहण की उस गर्भवती के पुत्र ने अपने पिता के मृत्यु-स्थान में इस मंदिर को किया है । उसके मध्य में इस बिंब को स्थापित किया था और क्रम से ब्राह्मणों ने यहाँ लिंग को स्थापित किया । अतः यह मेरी कही हुई स्तुति को कैसे सहन कर सकते हैं ? 1 - यह सुनकर विक्रमार्क ने उस बिंब की पूजा के लिए सो गाँव दीयें । उसने महर्षि से कहा- आपके समान कौन महर्षि हैं ? क्योंकिमेंढक के भक्षण में दक्षिण बहुत सर्प हैं, किन्तु पृथ्वी को धारण करने में समर्थ एक वह शेष नाग ही हैं । इस प्रकार से स्तुति कर सम्राट् अपने महल में चला गया । उनकी इस प्रभावना से संतुष्ट हुए संघ ने आलोचना के शेष पाँच वर्षों को प्रसाद-पद पर छोड़कर सूरीन्द्र किये । पश्चात् कुवादी रूपी अंधकार के लिए सूर्य सदृश सिद्धसेन दिवाकर ने ओंकारपुर को प्राप्त किया । वहाँ पर श्रावकों ने उनसे विज्ञप्ति की - हे स्वामी ! यहाँ मिथ्यात्वी अर्हत्-चैत्य को करने नहीं दे रहें हैं । तब वादीन्द्र हाथ में चार श्लोकों को रखकर विक्रमार्क राजा के द्वार पर गये । पहरेदार ने
SR No.006146
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandsuri, Raivatvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages454
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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