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उपदेश-प्रासाद - भाग १ के अभिप्राय से पूर्व पक्ष के करने पर, उसके अवधारण में असमर्थ हुए बौद्ध ने वादी के द्वारा कहे हुए की स्मृति के लिए खड़ी हाथ में लेकर लिखने लगा और उसकी विस्मृति से खेदित हुआ हृदय के स्फोटन से मरण को प्राप्त हुआ।
प्रातः शासनदेवी ने उस स्वरूप का ज्ञापन कर मल्लाचार्य के ऊपर पुष्प वृष्टि आदि की । राजा ने उनको वादि मद भंजक बिरुद दिया । उस राजा के द्वारा उस देश से निर्वासित कीये बुद्ध पुनः नही आये थे।
यह संबंध अन्यत्र राजशेखरसूरि द्वारा कीये हुए ग्रन्थ में इस प्रकार से हैं
__ खेटकपुर में देवादित्य ब्राह्मण की पुत्री विधवा हुई थी। उसने किसी गुरु से सौर मंत्र को प्राप्त कर ध्यान किया । तब सूर्य ने आकर उसका उपभोग किया । उससे दिव्य-शक्ति से वह गर्भिणी हुई थी। गर्भ सहित उसे पिता ने उपालंभ दिया । सत्य स्वरूप कहने पर लज्जा से उसे वलभी में भेजा । वहाँ उसने पुत्री और पुत्र को जन्म दिया । लेख-शालकों ने पढते हुए उन दोनों को-यें पिता रहित है इस प्रकार से कहा । तब पुत्र ने माता से पूछा- मेरे पिता कौन है ? माता ने कहा- मैं नहीं जानती हूँ । खेद से मरने की इच्छावाले पुत्र से साक्षात् होकर सूर्य ने कहा कि- हे वत्स ! मैं तेरा पिता हूँ । जो तेरा पराभव करता है, वह इस कंकर से वध्य हैं । पश्चात् पुनः यह कंकर तेरे समीप में आयगा । उस प्रकार से वह सभी बालकों को मारता हुआ वलभी के स्वामी के द्वारा तर्जित किया गया । उस राजा को भी उससे मारकर स्वयं राजा हुआ । जैन और शत्रुजय उद्धारकारी शिलादित्य ने अपनी बहन भृगुपुर के स्वामी को दी । उसका पुत्र मल्ल था ।