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उपदेश-प्रासाद - भाग १
१२६ जिन के समीप में दीक्षा और तपस्या ग्रहण की । अपने पाप की आलोचना कर स्वर्ग में गये ।
___ इस प्रकार से जो आगम-वाक्य से अज्ञ और भवाभिनन्दी जनों को प्रतिबोधित करते हैं, वें नन्दिषेण आदि के समान भोगों को प्राप्त कर क्रम से सिद्धि-लक्ष्मी को प्राप्त करतें हैं।
इस प्रकार उपदेश-प्रासाद में द्वितीय स्तंभ में छव्वीसवाँ व्याख्यान संपूर्ण हुआ।
सत्ताइसवा व्याख्यान अब तृतीय प्रभावक का लक्षण प्रकट किया जाता हैं
प्रमाण ग्रन्थों के बल से अथवा सिद्धांतों के बल से जो परमत का उच्छेदन करतें हैं, वें वादी-प्रभावक कहे जातें हैं।
बौद्ध आदि के द्वारा कहे हुए केवल प्रमाण हैं । जो कि
चार्वाक एक प्रत्यक्ष को, सुगत और कणभुज अनुमान और सशब्द इन दोनों को, पारमार्ष ऊपर के दोनों मतों को, आक्षपाद उपमा के साथ तीनों मतों को, प्रभाकर अर्थापत्ति से कहते हैं और भट्ट इन समस्तों को ही मानते है । जिनपति द्वारा कहे गये स्वाभाविक स्पष्ट और अस्पष्ट के भेद से दो प्रमाण हैं।
जो उनके द्वारा कहे हुए ग्रन्थ हैं, उनके बल से प्रतिवादी जीतने योग्य होता है, यह तात्पर्य हैं । भावार्थतो मल्लवादी के चरित्र से जाने और वह इस प्रकार से है
भृगुकच्छ में राजा के समक्ष वाद करने पर जितानन्द सूरि वितंडा से बौद्ध के द्वारा जीते गये और लज्जा से वलभी में चले गये । वहाँ उन्होंने अपनी बहन दुर्लभदेवी और उसके तीनों पुत्रों को