________________
उपदेश-प्रासाद
भाग १
१२४
अनेक रीति से दुःख-भागी करती है । इसलिए यह हास्य का अवसर नहीं है, तुम किसी नियम को ग्रहण करो ।
कमल ने भी लज्जा से कहा- मैं पड़ौसी वृद्ध कुम्हार के गंजे सिर को देखकर भोजन करूँगा, अन्यथा नहीं । गुरु ने उससे भी धर्म की प्राप्ति को जानकर - ऐसा हो, इस प्रकार से कहकर अन्यत्र गये । वह भी लोक लज्जा से पालन करने लगा ।
-
एक दिन वह राजकुल में रुद्ध हुआ संध्या के समय गृह में गया । जब वह भोजन करने के लिए बैठने लगा, तब माता ने उसे नियम का स्मरण कराया । तब कुम्हार को गृह में नहीं देखकर वह खान के प्रति चला । नीचे खोदते हुए निधि प्राप्त करनेवाले कुम्हार के गंजे सिर को दूर से ही देखकर, देख लिया है, देख लिया है, इस प्रकार से कहते हुए और
बाँधकर वापिस दौड़ते हुए उस कमल को शंकित हुए कुम्हार नेआधा अथवा सर्व तेरा ही है, परंतु तुम इस प्रकार से गाढ़ से मत कहो, ऐसा कहकर और उसे बुलाने पर कमल ने उस निधि को प्राप्त की । फिर से भी दया से उसने कुम्हार को थोड़ा धन दिया ।
घर आकर कमल सोचने लगा कि - अहो ! जिनधर्म ही पृथ्वीतल पर श्रेष्ठ हैं, मिथ्यात्व से पर्याप्त हुआ । पश्चात् हृदय में शुद्ध भक्ति से उसने विज्ञप्ति पूर्वक गुरु को निमंत्रित किया और उनके समीप में द्वादश व्रत स्वरूपवाले धर्म को ग्रहण कर और उसकी आराधना कर स्वर्ग को प्राप्त किया ।
शास्त्र युक्ति के कथन से सूरि ने नास्तिक भी कमल को विज्ञ किया था । ऐसे गुरु भव्य - प्राणियों की जड़ता के नाश के लिए समर्थ होते हैं ।
इस प्रकार उपदेश- प्रासाद में द्वितीय स्तंभ में नास्तिक प्रबोधक सर्वज्ञसूरि का प्रबन्ध संपूर्ण हुआ ।