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उपदेश-प्रासाद - भाग १
१२२ ___ एक दिन वह फिर से भी अन्य सूरिके समीप में ले जाया गया। पूर्व की वार्ता को सुनकर गुरु ने कहा कि- तुम नीचे देखते हुए हमारे व्याख्यान के ऊपर चिन्तन करो । इस प्रकार से कहकर और व्याख्यान के अंत में वैसे ही बुलाया गया उसने कहा कि- इस छिद्र में से एक सो आठ कीटिकाएँ निकली हैं । इस प्रकार से उसे हास्यपर देखकर अन्य श्रावकों ने निषेध किया। एक बार वहाँ पर उपदेश लब्धि से युक्त सर्वज्ञसूरि आये । पूर्व की वार्ता को सुनकर सूरि ने उसे प्रतिबोधित करने के लिए बुलाया । वहाँ उसके आजाने पर सूरि ने सोचा कि- इसे साम से समझाया जाएँ । ऐसा विचारकर उन्होंने पूछा कि- हे भद्र ! तुम कुछ-भी काम रहस्य को जानते हो ? उसने कहा-मैं क्या जानता हूँ ? पूज्य किसी सार का आदेश करें। गुरु कहने लगे कि- हे कमल ! प्रथम तुम इन स्त्रीयों के भेदों को जानो, जैसे कि
पमिनी, तत्पश्चात् चित्रिणी, तत्पश्चात् शंखिनी और हस्तिनी को जानो । प्रथम कही हुई स्त्री उत्तम है और उसके बाद में उत्तरोत्तर हीन है।
युवती राज-हँसी के समान मृदु और लीला-पूर्वक चलती है, तीन झुरियों से युक्त मध्य-भागवाली, हँस के समान वाणी से युक्त, सुंदर वेष को धारण करनेवाली, वह मानिनी मृदु, पवित्र और अल्प आहार को भोजन करती है, गाढ लज्जावाली, सफेद कुसुम के समान वस्त्रवाली प्रिया पद्मिनी होती है ।
यह सुनकर ये पंडित है, इस प्रकार से विचार करते हुए वह अपने गृह चला गया। द्वितीय दिन होने पर वह स्वयं ही आकर स्थित हुआ । सूरि चित्रिणी के स्वरूप को कहने लगें
इस स्त्री का वर्तुल और ऊँच वृन्त अंदर से मृदु, मदन-जल से आढ्य, रोमों से अति-सान्द्र नहीं होता हुआ और मदन का घर है। चित्रिणी प्रकृति से चपल दृष्टिवाली, बाह्य संभोगों में रक्त, मधुर