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________________ उपदेश-प्रासाद - भाग १ १२० एक दिन कफ का रोग होने पर वज्रस्वामी के द्वारा भोजन के पश्चात् भक्षण करने के लिए कर्ण में स्थापित की हुई वह सूंठ प्रतिक्रमण में भूमि के ऊपर नीचे गिर पड़ी । उस प्रमाद से स्व-मृत्यु को समीप जानकर और स्व-शिष्य को गच्छ देकर रथावर्त पर्वत के ऊपर अनशन को ग्रहण कर स्वर्ग को प्राप्त किया । तत्पश्चात् श्री वज्रसेन सोपारक में जिनदत्त श्रावक के गृह में आयें । तब श्रेष्ठी ने मुनि से कहा कि- लाख द्रव्य से इतना धान्य लाया गया है । इसके बीच में विष को डालकर और भक्षण कर कुटुंब सहित मेरे द्वारा दीर्घ निद्रा की जायगी । गुरु ने कहा कि- कल धान्य से पूर्ण बहुत वाहन आयेंगें, उससे तुम इस कार्य को मत करो । प्रभात में सर्वत्र सुभिक्ष के फैल जाने पर उसने प्रव्रज्या ग्रहण की । सूरि चार गणों को संस्थापित कर जिन-शासन के प्रभावक हुए । विशेष से यह प्रबन्ध आवश्यक बृहद्-वृत्ति से जानें । इस प्रकार श्री वज्रसूरि के इस सच्चरित्र को भ्रमर के समान हृदय रूपी कमल में धारण कर, भव्य सदा ही सुगुणों के एक सार ऐसे सिद्धांत के पाठ में प्रयत्न करें। इस प्रकार उपदेश-प्रासाद में द्वितीय स्तंभ में प्रभावक अधिकार में श्री वज्रस्वामी का प्रबन्ध संपूर्ण हुआ । पच्चीसवा व्याख्यान अब धर्म-कथा का स्वरूप लिखा जाता है जो उपदेशक व्याख्यान के अवसर में लब्धि का प्रयोग कर उपदेश देता है, वह भी धर्मकथक नामक द्वितीय प्रभावक है । जो अनुयोग के समय में स्व-शक्ति को प्रकटित कर हेतु
SR No.006146
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandsuri, Raivatvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages454
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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