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________________ उपदेश-प्र - प्रासाद भाग १ जैसे कि ११३ श्रेष्ठ हँसों से, आन्दोलन करते हुए कमलों से, विभिन्न रंगों से युक्त तरंगों से, अंदर गंभीर पानी से, चपल बगलों के समूह के द्वारा ग्रास कीये जाते हुए मछलियों से, किनारें में उगे हुए वृक्ष समूह के नीचे सोये हुए पुत्र के लिए स्त्रीयों के द्वारा गाये जाते हुए गीतों से, और क्रीड़ा करती हुई स्त्रीयों से हे राजन् ! आपका चलते हुए चक्रवाकवाला यह सरोवर शोभ रहा है ? तब राजा की आज्ञा से सम्यग्-धर्मी ऐसा धनपाल कहने लगा कि यह सरोवर के बहाने से श्रेष्ठ दान- शाला है, जहाँ पर मछलियाँ आदि रसोई के रूप में व्यवस्थित की गयी है और बगलें, सारस और चक्रवाक पक्षियाँ पात्र हुए हैं । वहाँ पर कितना पुण्य हो रहा है, यह हम नहीं जानतें है। राजा ने फिर से भी द्वितीय दृष्टि में दृष्टि डाली । राजा ने यज्ञ में मारने के लिए लाये हुए बकरे के दीन वचन को सुनकर पूछा कि - यह पशु क्या कह रहा है ? कविराज कहने लगा स्थान-स्थान पर हमकों बलि के लिए मारें । खाये हुए तृणों से हमारी कुक्षि जल रही है । अरक्ष और दक्ष मनुष्यों से हम पशु नाम से कहें जातें है । हम बहन, स्त्री के भेद से विकल हैं और सदा ही भूख-प्यास से युक्त है, उससे हे देव ! आप हमको स्वर्ग में ले जाओ, इस प्रकार से यें बकरें आपसे प्रार्थना कर रहे है । तब राजा ने धनपाल से पूछा कि - हे पंडित ! यह क्या कह रहा है ? धनपाल ने कहामैं स्वर्ग - फल के उपभोग के लिए तृषित नहीं हूँ और न ही मैंने आपसे प्रार्थना की है । सतत ही तृण-भक्षण से मैं संतुष्ट हूँ, हे साधु ! तुझे यह योग्य नही है । यदि यज्ञ में तेरे द्वारा मारे हुए प्राणी 1
SR No.006146
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandsuri, Raivatvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages454
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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