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उपदेश-प्रासाद - भाग १
१०८ अंडगोलिक नामक मनुष्य रहतें हैं। उन मनुष्यों से अंतर अंडगोलिक को निकालकर और उनको चमरी के पूंछ के केशों से गूंथकर तथा अपने दोनों कानों में बाँधकर जो समुद्र में प्रवेश करते हैं, उनके ऊपर जलचर-जन्तु प्रभाव से युक्त नहीं होते और वें समुद्र के अंदर रहे हुए रत्न आदि को ग्रहण कर स्व-स्थल पर आ जाते है ।
___ गौतम ने पूछा कि- हे भगवन् ! किस उपाय से ग्रहण करते हैं ? प्रभु ने कहा कि- हे गौतम ! लवण-समुद्र में रत्न नामक अन्तर्वीप हैं । वहाँ के निवासी रत्न व्यापारी जहाँ समुद्र के निकट में चक्की की आकृतिवालें वज्रशिला के संपुट है, वहाँ आकर और उनको खोलकर उनके मध्य में चार महा-विगईयों को डालतें है । वहाँ से वें अंतर अंडगोलिक मनुष्य जहाँ निवास करतें हैं, वहाँ वें व्यापारी मांस आदि को ग्रहण कर आतें हैं । वें अंतर अंडगोलिक मनुष्य दूर से ही उनको देखकर मारने के लिए दौड़ते हैं । व्यापारी भी उनके भक्षण के लिए पद-पद पर मांस आदि से भरे हुए पात्रों को रखकर शीघ्र ही वापिस लौटते है । वें भी व्यापारी के पीछे वज्रशिला के संपुट तक दौड़तें हैं । वहाँ आकर वें मांस आदि भक्षण के लिए उनके मध्य में प्रवेश करतें हैं । व्यापारी अपने स्थान पर चले जाते
जब वें अंतर अंडगोलिक मनुष्य मांस आदि का भक्षण करते हुए सात, आठ, दस अथवा पंद्रह दिनों को व्यतीत करते हैं, तब कवच और तलवार से युक्त वें व्यापारी आकर वज्रशिला के संपुटों को सात-आठ मंडलों से वेष्टित करते हैं । अन्य व्यापारी पूर्व में उद्घाटित कीये हुए को ढंक देते हैं । कदाचित् एक भी अंतर अंडगोलिक मनुष्य उसके मध्य में से बाहर निकले तो उन सभी को मार डालें । ऐसे बलशाली वें उसके मध्य में संवत्सर पर्यन्त अ-मृत