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उपदेश-प्रासाद - भाग १
राम ने लक्ष्मण से कहा कि- हे वत्स ! हम वहाँ जाकर आश्चर्य को देखें । वज्रकर्णका साधर्मिक वात्सल्य किया जाय । तब दशपुर के बाहर अग्रज को छोड़कर लक्ष्मण नगर के मध्य में गया । वज्रकर्ण ने भोजन के लिए निमंत्रण किया । तब लक्ष्मण ने कहा किपत्नी सहित मेरा भाई बाहर देव गृह में हैं । तब वज्रकर्ण ने राम को निमंत्रित कर सभी को भोजन कराया ।
राम ने लक्ष्मण को सिंहस्थ के पास में भेजा । वहाँ जाकर उस राजा से कहा- मैं राम के द्वारा भेजा गया हूँ। अयोध्या पति भरत की आज्ञा है तुम वज्रकर्ण के साथ में युद्ध मत करो । सिंहरथ ने कहामैं भरत की आज्ञा का स्वीकार नहीं करता हूँ। लक्ष्मण ने कहा- तुम युद्ध के लिए तैयार बनो । सिंहरथ भी गज पर चढ़कर संग्राम के लिए आया । लक्ष्मण ने जीतकर उसे पृथ्वी के ऊपर गिराया । तब सिंहरथ ने विज्ञप्ति की- मुझ अज्ञानी ने आप स्वामी को नहीं जाना, अब यथा- इच्छित करो । वज्रकर्ण को उज्जयिनी का राज्य देकर और सिंहरथ को सेवक कर छोड़ दिया । पश्चात् सभी स्व-स्थान पर चले गये । वज्रकर्ण भी नियम का परिपालन कर और सभी जीवों से क्षमा माँगकर स्वर्ग में गया, पश्चात् मोक्ष में जायगा । श्रीवज्रकर्ण राजा के वर्णन को सुनकर, काय-शुद्धि के धारक भव्य मनुष्यों के द्वारा जिनेन्द्र को छोड़कर अन्य को नमस्कार नहीं करना चाहिए, जिससे कि मुक्ति रूपी स्त्री शीघ्र से आलिंगन करती हैं। . इस प्रकार से काय-शुद्धि में वज्रकर्ण राजा का दृष्टांत है ।
इस प्रकार उपदेश-प्रासाद में द्वितीय स्तंभ में अठारहवाँ व्याख्यान संपूर्ण हुआ।