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________________ उपदेश-प्रासाद भाग १ ८७ तब वहाँ समवसरण कीये हुए प्रभु को नमस्कार कर और पूछकर गौतम वाणिज्य ग्राम में भिक्षा के लिए आये । वहाँ से एषणीय आहार को लेकर वापिस आते हुए बहुत जनों से आनन्द की वार्त्ता को सुनकर उससे सुख को पूछने के लिए वहीं पर आये । वहाँ पर आये उन स्वामी-पाद युगल को प्रणाम कर उसने भी पूछा कि - हे भगवन् ! क्या श्रावक को भी अवधिज्ञान होता हैं ? गौतम ने कहा किसुश्रावक में होता हैं । यह सुनकर उसने कहा कि - हे प्रभु! मुझे ज्ञान हुआ हैं, जिससे मैं ऊर्ध्व में सौधर्म को, नीचे में लोलुक को तिर्यग में लवण - समुद्र को, तीन दिशाओं में पाँच-पाँच सो योजनों तक और उत्तर दिशा में क्षुद्रहिम पर्वत तक वस्तुओं को देख रहा हूँ । इस प्रकार कहने पर गौतम ने कहा कि - ऐसा गृहस्थों को संभवित नहीं हैं, उससे तुम मिथ्या दुष्कृत करो । उसने कहा कि - हे भगवन् ! मिथ्या कहने पर मिथ्या दुष्कृत होता हैं, उससे आपके द्वारा ही वह कहना चाहिए । I शंकित हुए गौतम ने वहाँ जाकर तीर्थंकर को पूछा । तब प्रभु ने भी वैसे ही कहा । उसे सुनकर और वहाँ आकर गौतम ने मिथ्या दृष्कृत दिया । अब आनन्द पंच - नमस्कार का स्मरण करता हुआ सौधर्म कल्प में अरुणाभ विमान में चार पल्योपम की आयुवाला देव हुआ। वहाँ से च्यवकर महाविदेह में मोक्ष - पुरी को प्राप्त करेगा । विशेष से यह प्रबंध उपासक सूत्र से जानें । इस प्रकार से आनन्द के चरित्र को सुनकर आनन्द से भरे हुए श्रावक प्रति-दिन मन की शुद्धि के लिए आदर सहित हो । इस प्रकार आनन्द का चरित्र सोलहवाँ हुआ । इस प्रकार उपदेश - प्रासाद में द्वितीय स्तंभ में सोलहवाँ व्याख्यान संपूर्ण हुआ ।
SR No.006146
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandsuri, Raivatvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages454
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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