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________________ +-60 “सांच को आंच नहीं” (0902 चूर्णिकार नियुक्ति गाथा कहते है, वह आज मूलसूत्र में पायी जाती है, कुछ जगह पर 'केति सुत्तं, केति वित्तिवयणमिमं भणंति' के द्वारा चूर्णिकार उसकाल में मूलसूत्र एवं व्याख्या साहित्य का संमिश्रण होना सूचित करते है । अगस्त्यसिंहजसूरिजी की चूर्णि में प्रदर्शित नियुक्ति गाथाओं से कई अधिक गाथाएँ हारिभद्री टीका में मिलती है । जिसका स्पष्टीकरण लाडनु से प्रकाशित “दसवेयालियं” की प्रस्तावना में भी दिया है । अर्थात् सूत्रों में कुछ वृद्धि या अर्वाचीन बात देखी जावें तो वह उसके अभिन्न अंग समान व्याख्या साहित्य के कुछ अंश के जुड़ने से हुई है, अत: आगमों में मनस्वी, प्रक्षेप की शंका उचित नहीं है। दुसरी बात मूल सूत्रों में वचित् परस्पर विसंवाद दिखने पर, अपेक्षा भेद या मतांतर कहकर उसका समाधान किया जाता है तथा स्थानांग सूत्र औपपातिक सूत्र, आदि मूलसूत्रों में गोदास आदि नौ गण तथा निहव आदि परवर्ती घटनाओं के उल्लेखों के मिलने मात्र से आगमों की प्रामाणिकता में संदेह भी नहीं किया जाता है । वहाँ पर समस्त श्वेतांबर परंपरा को आगमों को पुस्तकारुढ करने वाले आचार्यों की प्रामाणिकता, भवभीरुता पर विश्वास के बल से लेखन काल तक हुई घटनाओं के उल्लेख किये जाने पर भी आगमों में संदेह नहीं होता है, क्योंकि जगह-जगह पर टीकाकारों ने इस विषय में प्रश्न उठाकर सूत्रोंका त्रिकाल गोचर होना वगैरह समाधान भी किये है तथा अभी बतायी रीति से व्याख्या साहित्य के कुछ अंशो का सूत्र से संमिश्रण या संकलनकार द्वारा उचित जानकर तत्काल तक हुई घटनाओं का अशठ रुप से उल्लेख करना वगैरह समाधान भी किये जा सकते है।। देवेन्द्रमुनि शास्त्रीजी ने भी कहा है - "उत्तर में निवेदन है; जैन दृष्टि से भगवान महावीर सर्वज्ञ थे, अत: वे पश्चात् होने वाली घटनाओं की सूचना करें इसमें कोई आश्चर्य नहीं है । जैसे - नवम् स्थानमें आगामी - उत्सर्पिणी काल के भावी तीर्थंकर महापद्म का चरित्र दिया गया है । और भी अनेक स्थलों पर भविष्य में होनेवाली घटनाओं का उल्लेख है । 86
SR No.006136
Book TitleSanch Ko Aanch Nahi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2016
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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