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________________ "सांच को आंच नहीं" +3 और चोबीस तीर्थङ्करों के “ चैत्यवृक्ष" आदि जो कोई भी चैत्यान्त शब्द सूत्रों में आया, उसको नेस्तनाबूद कर दिया । इनके पुरोगामी ऋषि जेठमलजी आदि “चैत्य” शब्द को " व्यन्तर का मन्दिर" मानकर इसको निभाते थे, उनके बाद के भी बीसवी शती तक के स्थानकवासी लेखक “ चैत्यशब्द” का कही 'ज्ञान', कहीं 'साधु', कहीं 'व्यन्तर देव का मन्दिर' मानकर सूत्रों में इन शब्दों को निभा रहे थे, परन्तु “श्री पुप्फ भिक्खूजी” को मालूम हुआ कि इन शब्दों के अर्थ बदलकर चैत्यादि शब्द रहने देना यह एक प्रकार की लीपापोती है । “चैत्यशब्द” जब तक सूत्रों में बना रहेगा तब तक मूर्तिपूजा के विरोध में लड़ना झगडना बेकार है, यह सोचकर ही आपने “चैत्य” “आयतन ” “जिनघर", “ चैत्यवृक्ष” आदि शब्दों को निकालकर अपना मार्ग निष्कंटक बनाया है । ठीक है, इनकी समझ से तो यह एक पुरुषार्थ किया है, परन्तु इस करतूत से इनके सूत्रों में जो नवीनता प्रविष्ट हुई है, उसका परिणाम भविष्य में ज्ञात होगा । पुप्फभिक्खूजी ने पूजा-विषयक सूत्र- पाठों, मन्दिरों और मूर्तिविषयक शब्दों को निकालकर यह सिद्ध किया है, कि इनके पूर्ववर्ती शाह लौका, धर्मसिंह, ऋषि जेठमलजी और श्री अमोलक ऋषिजी आदि शब्दों का अर्थ बदलकर मूर्तिपूजा का खण्डन करते थे, वह गलत था । ( पट्टावली पराग पृ. ४४७ से. पृ. ४५५ ) इस सत्य घटनाको पढकर पाठक समझ सकते है, “ऐसे प्रक्षेपयुक्त आगमों के प्रति अंधश्रद्धा बुद्धि न रखकर, विवेक बद्धि रखना ही उपयुक्त है” ये वचन लेखकश्री के घर के आगमों के लिए ही लागु पडेंगे । तथा “ प्रक्षेपयुक्त आगम” लेखक के इन शब्दों से आगम एवं पूर्वाचार्यों के प्रति उनकी भावना स्पष्ट प्रगट होती है । आगमो के पाठों की प्रामाणिकता को देवेन्द्रमुनिशास्त्री ने भी स्वीकारी है । देखे उन्हीं के शब्द - 75
SR No.006136
Book TitleSanch Ko Aanch Nahi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2016
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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