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________________ 602 सांच को आंच नहीं” (09604 ने तथा कॉन्फ्रेन्स ने श्री पुष्फभिक्खू महाराज के साथ पत्र व्यवहार भी किया है, इसके अतिरिक्त यह प्रश्नश्रमणसंघ के विचारणीय प्रश्नों पर रखा गया है और श्रमणसंघ के अधिकारी मुनिराज थोड़े समय में मिलेंगे तब इस पुस्तक प्रकाशन के विषय में आवश्यक निर्णय करने का सोचा है।” कुछ समय के बाद पत्र में लिख्ने मुजब ता. ०७-०६-६२ के “जैन प्रकाश” में स्थानकवासी श्रमणसंघ की कार्यवाहक समिति ने “सुत्तागम" पुस्तक को अप्रमाणित ठहराने वाला नीचे लिखा प्रस्ताव सर्वानुमति से पास किया... ..... ..... ___“मन्त्री श्री फूलचन्दजी महाराज ने “सुत्तागमे” नामक पुस्तक के प्रकाशन में आगमों में कतिपय मूल पाठ निकाल दिए है, वह योग्य नहीं है। शास्त्र के मूल पाठों में कमी करने का किसी को अधिकार नहीं है, इसलिए “सुत्तागमे" नामक सूत्र के प्रस्तुत प्रकाशन को यह कार्यवाहक समिति अप्रमाणित उद्घोषित करती है।" उपर्युक्त स्थानकवासी श्रमणसंघ की समिति का प्रस्ताव प्रसिद्ध होने के बाद इस विषय में अधिक लिखना ठीक नहीं समझा और चर्चा वहीं स्थगित हो गई। पट्टावली के विवरण में श्री पुष्फभिक्खू के “सुत्तागमे” नामक सूत्रों के प्रकाशन के सम्बन्ध में पुप्फभिक्खूजी द्वारा किये गये पाठ परिवर्तन के सम्बन्ध में कुछ लिखना आवश्यक समझ कर अर निकाले हुए सूत्रपाठों की तालिका दी है । पुष्फभिक्खूजी का पुरुषार्थ इतना करके ही पूरा नहीं हुआ है, उन्होंने सूत्रों में से चैत्य शब्द को तो इस प्रकार लुप्त कर दिया है कि सारा प्रकाशन पढ़ लेने पर भी शायद ही एकाध जगह चैत्य शब्द दृष्टिगोचर हो जाये। .... . . . .. - भिक्खूजी की चैत्य शब्द पर इतनी अकृपा कैसे हुई यह समझ में नहीं आता, मन्दिर अथवा मूर्तिवाचक “चैत्य” शब्द को ही काट दिया होता तो बात और थी । पर आपने चुन-चुन कर “गुणशिलकचैत्य”, “पूर्णभद्रचैत्य”, - 74
SR No.006136
Book TitleSanch Ko Aanch Nahi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2016
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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