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________________ *-G006 सांच को आंच नहीं" (20902 धूमकेतु नाम का विग्रह उत्पादक ग्रह आ बैठा, जिसके प्रभाव से ही लोकाशाह जैसे निहव पैदा हुए । उसने जैन धर्म के अंदर कुसंप और अशांति पैदाकर सर्वनाश करने का दुःसाहस किया । वि. सं. १५२५ तक तो अजैनों को जैन बनाये जा रहे थे, बाद लोकाशाह के कदाग्रह के कारण गामो-गाम फूटकुसंप और धडाबन्धी के कारण वे शक्तियाँ छिन्न-भिन्न हो गई । लोकाशाह के समय मे जैनों की संख्या ७ करोड थी जो फूट-कुसंप के कारण १२-१३ लाख ही रही । अब विचार कीजिये लोकाशाह ने कैसा पुनरुद्धार किया ? लोकाशाह के पूरे परिचय का आधार लेखकश्री के पास केवल संवत् १९९१ में प्रकाशित हुई 'श्री जैन धर्मनो प्राचीन संक्षिप्त इतिहास अने प्रभुवीर पट्टावली' पुस्तक है । उस पुस्तक का आधार संवत् १६३६ की लिखी हस्तपुस्तक १६३६ यानि लगभग १०० वर्ष पूर्व की हस्तपुस्तक हुई, परंतु उसकी भाषा पर से उसे वर्तमान में किसी व्यक्ति की बनावटी कृति निश्चितरूप से कह सकते है चूंकि ४०० साल पुरानी भाषा और अभी की भाषा में बहुत अंतर है । उपरोक्त चरित्र वर्तमानकालीन भाषा में हैं, उसमें ४०० वर्ष प्राचीन भाषा है ही नहीं। ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी वह असत्य है, लोकाशाह सं. १५०० में अहमदाबाद आये, साहुकारी ब्याज का धंधा चालु किया, उसके बाद मुहम्मद बादशाह से मुलाकात कर खजांची बने । ये बाते १६३६ की कृति में बतायी - परंतु इतिहास के हिसाब से यह सब हकीकत असत्य ठहरती है, क्योंकि इतिहासकार कहते हैं कि मुहम्मद बादशाह का सं. १४९७ में अहमदाबाद में मरण हुआ । अब विचार करें - लोकाशाह की सं. १५०१ में बादशाह से मुलाकात कैसे हो सकती है ? इसलिये वे दो हस्तप्रत्ते नकली है । इसलिये लेखकश्री का दिया हुआ लोकाशाह का चरित्र संपूर्ण काल्पनिक बनावटी सिद्ध होता है। 56
SR No.006136
Book TitleSanch Ko Aanch Nahi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2016
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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