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" सांच को आंच नहीं " 00: "महात्मा लौकाशाह का जीवन की समीक्षा
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इस प्रकरण में और पीछे के प्रकरण में लेखक लिखते है कि 'लोकाशाह पुनरुद्धार किया', तो प्रश्न होता है कि उसके पूर्व में क्या सत्य धर्म नहीं था ? उसका विच्छेद हुआ था ? भगवती सूत्र २० शतक ८ उद्देश में परमात्मा कहते है - “है गौतम इस जंबुद्वीप भरतखंड में अवसर्पिणी काल में मेरा शासन २१००० वर्ष पर्यंत चलेगा ।” इस सूत्र पाठ में विच्छेद का अथवा पुनरुद्धार का नामनिशान भी नहीं है। किन्तु निरंतर चलने का ही अर्थ निकलता है ।
कल्पसूत्र में भी २००० वर्ष तक साधु-साध्वी की उदय - उदय पूजा होगी ओर भस्मग्रह के बाद साधु-साध्वीकी उदय - उदय पूजा होगी ऐसा कहा है, ग्रहयोग से जिनकी पूजा नहीं होती थी, उन्हीं की विशेष प्रकार से होगी, गृहस्थ की पूजा का उससे क्या लेना-देना ?
वास्तवमें कल्पसूत्र के मुताबिक श्री आनंदविमलसूरि, श्री हेमविलमसूरि, श्री दानसूरि, श्री हीरसूरिजी श्री जिनचंद्रसूरिजी वगैरह आचार्यों ने क्रियोद्धार किया, तब से त्यागी - शुद्ध - सुसाधु की मान्यता - पूज्यता लोक में दिन-दिन फैलने लगी- बढने लगी जो प्रत्यक्ष है ।
कल्पसूत्र में ऐसा तो कहा ही नहीं है कि भस्मग्रह के कारण दो हजार वर्ष तक दयामय धर्म का लोप होगा, लोग हिंसाधर्म के कुमार्ग पर चढ़ेंगे और ग्रह के उतरने के बाद कोई गृहस्थ पुनरुद्धार करेगा - उससे उसकी उदयउदय पूजा होगी । जिस स्त्रीने गर्भधारण किया हैं, वही पुत्रको जन्म देगी । जो रोगी है, रोग दूर होने पर वही निरोगी बनेगा, उसी प्रकार जिनकी पूजा बंद हुई है, उन्हीं की पूजा चालु होगी, यह स्पष्ट अर्थ होते हुए भी तोड-मोडकर सूत्र का जानबुझकर उल्टा अर्थ करना असत्यप्रियता को सूचित करता है । जब वि.सं. १५३० में भस्मग्रह उतरा तो उसी समय संघ की राशि पर
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