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________________ 60 “सांच को आंच नहीं” (0960-7 में सत्ताधारी नरेश या पंडित मध्यस्थ न हों, वहां जय पराजय का सम्पूर्ण निर्णय नहीं हो सकता है । पर एक समय ऐसा अवसर मिल गया कि न्यायशील नाभा (पंजाब) नरेश की राजधानी नाभा में इधर जैनाचार्य श्री विजयवल्लभ सूरिजी (उस समय के मुनि श्री वल्लभ विजयजी महाराज) उधर स्थानकवासी पूज्य सोहनलालजी म० अपने विद्धान शिष्य मुनि श्री उदयचन्दजी के साथ नाभा में पधार गये । इन दोनों महात्माओं के आपसी प्रश्नोत्तर का कार्य नाभा नरेश की राज सभा के पण्डितों पर रख दिया गया जिसमें जय पराजय का निर्णय नाभानरेश के माध्यम से उनकी सभा के विद्वान पण्डित करें । बस ! उन्होंने जो फैसला दिया उसको अक्षरश: यहां उद्धृत कर दिया जाता है। फैसला शास्त्रार्थ नाभा ॐ श्रीगणाधिपतये नमः श्रीमान्मुनिवर वल्लभविजयजी ! . पंडित श्रेणि सरकार नाभा इस लेख द्वारा आपको विदित करते हैं । गत संवत्सर में आपने हमारे यहां श्री १०८ मन्महाराजाधिराज नाभानरेशजी के हजूर में ६ (छ:) प्रश्न निवेदन करके कहा था कि यद्यपि जैन मत और जैन शास्त्र भी सर्वथा एक है परंतु कालान्तर से हमारे और ढुंढियों में परस्पर विवाद चला आता है बल्कि कई एक जगह पर शास्त्रार्थ भी हुआ परन्तु यह बात निश्चय नहीं हुई कि अमुक पक्ष साधु है । श्रीमहाराज की न्यायशीलता और दयालुता देशांतरों में विख्यात है इससे हमें आशा है कि हमारे भी परस्पर विवाद का मूल आपके न्याय प्रभाव से दूर हो जायेगा, भगवदिच्छा से इन दोनों में ढूंढियों के महंत सोहनलालजी यहां आये हुए हैं, उनके सन्मुख ही हमें इन ६ (छ:) प्रश्नों का उत्तर जैन मत के शास्त्रानुसार उनसे दिलाया जावे । आपके कथनानुसार उक्त महंतजी को इस विषय की इत्तला दी गई, आपने इत्तला पाकर साधु उदयचन्दजी को अपने स्थानापन्न का अधिकार देकर उनके हानि लाभ को अपना स्वीकार करके शास्त्रार्थ करना मान लिया था। तदनंतर श्री १०८ श्रीमन्महाराजाधिराजजी की आज्ञानुसार हम लोगों 34
SR No.006136
Book TitleSanch Ko Aanch Nahi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2016
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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