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________________ Ge “सांच को आंच नहीं” (0902 बोलने का काम पडे तब यना करके बोलना यही खास जिनाज्ञा है। __से भिक्खू वा २ उस्सासमाणे वा नीसासमाणे वा कासमाणे वा छीयमाणे वा जंभायमाणे वा उड्डोए वा वायनिसग्गं वा करेमाणे पुवामेव आसयं वा पोसयं वा पाणिणा परिपेहित्ता तओ संजयामेव अससिज्जा वा जाव वायनिसग्गं वा करेज्जा २ ॥ (आचा. श्रु. २, चू., १. अध्य २, उ. ३, सूत्र १०९) । उपर के दोनों पाठों से स्पष्ट है कि - जब-जब मुँह खुलता है तब मुँह को ढंकना, यह शास्त्र की आज्ञा है, अत: मुहपत्ति को २४ घंटे बांधकर रखने में आज्ञा भंग का दोष भी है। (५) “वस्त्रयुक्तं तथा हस्तं, क्षिप्यमाणं मुखे सदा । धर्मेति व्याहरंतं, नमस्कृत्य स्थितंहरे ॥” शिवपुराण, ज्ञानसंहिता, २९ वां अध्याय, श्लोक ३११ ॥ इस प्रकार शिवपुराण आदि जैनेतर शास्त्र, प्राचीन गुरुमूर्तियों से भी मुंहपत्ति को हाथ में रखने की सुविहित परंपरा सिद्ध होती है और वह संविग्न परंपरा आज भी मौजुद है, अत: मुंहपत्ति बांधे रखने में सुविहित परंपरा के भंग का दोष भी लगता है। (६) बिना कारण मुँह बांधे फिरना अव्यवहारिक - अशिष्ट भी दिखता है, अत: लोक विरुद्ध भी है, इत्यादि कई दोष मुंहपत्ति बांधकर रखने में लगते हैं। जिज्ञासु : तहत्ति, आपने सचोट रुप से आगम एवं शास्त्र पाठों से २४ घंटे मुंहपत्ति को बांध कर रखने की प्रवृत्ति को, आगम, एवं शास्त्र विरुद्ध सिद्ध किया है। अगर आपके पास इतने प्रमाण मौजुद है तो आप अज्ञानता में डुबी हुई भोली एवं श्रद्धावंत जनता को क्यों नहीं समझाते है तथा उनके साधुओं को समझाकर जैनशासन में एकता को क्यों नहीं करवाते हैं ? - ___ सद्गुरु : आपकी भावना सुंदर है । पहले के जमाने में कई बार वाद हुए, उसमें मंदिरमार्गी जीते है कई स्थानकवासी साधुओं ने पुन: सत्य मार्ग का स्वीकार भी किया था । निकट के काल में नाभा नरेश की सभा में मंदिरमार्गी मुनि वल्लभविजयजी और स्थानकवासी संत श्री उदयचंदजी का वाद हुआ था, जिसमे मुनि वल्लभविजयजी की जीत हुई, ऐसे फैसले भी 117
SR No.006136
Book TitleSanch Ko Aanch Nahi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2016
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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