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________________ G000 “सांच को आंच नहीं" (O900 (ii) आचारांग तृतीय चूला, ३ भावना अध्ययन में महावीर स्वामी के माता-पिता पार्श्वनाथ भगवान के अनुयायी थे, ऐसा लिखा है, अतः कल्पसूत्र में (पीछे के प्रकरणों से दशाश्रुतस्कन्ध के ८वां अध्ययन के रुप में सिद्ध) प्रभुवीर के जन्म महोत्सव में भी 'सए सहस्से सयसहस्सीए जाए दाए भाए...' इत्यादि द्वारा सूचित यज्ञ-जिनमंदिरों में परमात्मभक्ति महोत्सव सिद्ध होता है। (iii) भगवती सूत्र में तुंगीया नगरी के श्रावकों के वर्णन में 'कयबलिकम्मे' के द्वारा जिन प्रतिमा-पूजन का सूचन मिलता है, जिसका अर्थ नवांगी टीकाकार अभयदेवसूरिजी ने भी किया है । अभयदेवसूरिजी की प्रामाणिकता के लिए नेमिचंदजी बांठिया ने भी 'विद्युत बादर तेजस्काय है' पुस्तक के पृ. ७४ में लिखा है - “बंधुओ ! कहाँ आगम मनीषी नवांगी टीकाकार आचार्य अभयदेव सूरिजी की सरलता, निरभिमानता एवं उत्सूत्र प्ररुपणा का भय जो उनके उक्त उद्गारों से परिलक्षित हो रहा है...." (iv) आवश्यक नियुक्ति में श्लोक ४९० में 'वग्गुर श्रेष्ठी द्वारा, मल्लीनाथ भगवान की पूजा का उल्लेख मिलता है। (v) भक्त परिज्ञा - श्लोक ३० में देशविरतिधर श्रावक अंत समय में पुनः अणुव्रत लेकर अपने द्रव्य को नूतन जिन मंदिर, जिनबिंब आदि की प्रतिष्ठाओं तथा प्रशस्त पुस्तक, अच्छे तीर्थ एवं तीर्थंकरों की पूजा में वितरित करता है, ऐसा लिखा है। “निअदव्यमपुवजिणिंदभवनजिणबिंबवर पइठ्ठासु । विअरइ पसत्थ पुत्थय सुतित्थतित्थयरपूआसु ॥३०॥" (vi) आवश्यक नियुक्ति गाथा ३२२ में श्रेयांसकुमार ने प्रभु के पारणा स्थान पर रत्नमय पीठ बनाकर पूजा की थी। आवश्यक नियुक्ति गाथा ३३५ में बाहुबलीजी द्वारा धर्मचक्र तीर्थ की स्थापना। | 105 - - -
SR No.006136
Book TitleSanch Ko Aanch Nahi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2016
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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