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परमात्माके नामका जाप करने से गुण की प्राप्ती कैसे होगी, तो क्या जवाब देंगे? क्या भगवानके नाम का जाप छोड देंगे?
वास्तविकता यह है कि दूध की प्राप्ति अपने मन पर निर्भर नहीं, इसलिये पत्थर की गाय या नाम का जाप लाभकारी नहीं बनता। जबकि सम्यग्दर्शनादि गुण (या मिथ्यात्वादि दोष) और पुण्य (या पाप) मुख्य रुपसे मन के अधीन है।
जब मन शुभ (अशुभ) भावों से भावित बनता है तब सम्यग्दर्शनादि गुण (मिथ्यात्वादि दोष) और पुण्य (पाप) का लाभ होता है।
जैसे परमात्मा के नाम स्मरण से मन भक्तिभाव से भावित बनता है और गुण-पुण्यका लाभ होता है उसी तरह प्रतिमा के दर्शन-वंदन-पूजन से भी मन परमात्मा की साधना-गुण-प्रभाव आदि की स्मृति से भावित बनता है। तो उससे गुण-पुण्य की प्राप्ति क्यों नहीं हो सकती?
श्री दशवैकालिक सूत्रमें स्त्रीका चित्र देखने का भी निषेध किया है क्यों कि स्त्रीके चित्र का दर्शन भी मन को राग-विकार-वासना से वासित करके नुकसानकारी बनाता है।
तो परमात्माकी प्रतिमा भी मन को वैराग्य -क्षमा-उपशमभाव के भावों से वासित करके लाभकारी बनाती ही है।
टेलिविझन के द्रश्यों की बूरी असर से सब परिचित है।
माता-पिता के फोटो के दर्शन से कृतज्ञता का भाव उत्पन्न होना सभी जानते है। गुरुदेव के फोटो के दर्शनसे भक्तिभाव की उत्पत्ति सब मानते हैं। तो परमात्मा की प्रतिमा के दर्शन से भक्तिभावों की उत्पत्ति क्यों नहीं होगी?
वास्तवमें तो रोजाना भावपूर्ण भक्ति के साथ पूजा करनेवाले श्रावकों को ही उनका अनुभव पूछ लेना चाहिए। और यदि वे यह कहते हैं कि उनके भावों की सुंदरतम वृध्दि होती है तो स्वयं भी पूजा शुरु कर देनी चाहिए।
जो समय हम परमात्माकी स्तुति-पूजामें व्यतीत करते है, वही समय का श्रेष्ठउपयोग
जो धन हम परमात्माके चरणोमें समर्पित करतें है, वही धन का श्रेष्ठ सदुपयोग है।