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प्रश्न : प्रतिमामें प्रभुजीके प्राणोंकी प्रतिष्ठा करते हैं, तो क्या भगवानको मोक्षमें
से नीचे ले आते है ? उत्तर : प्रतिमामें प्रतिष्ठा करने का अर्थ है कि प्रतिमाकों शास्त्रोक्त विधिविधान मंत्रोच्चार के द्वारा प्राणवान बनाना। प्राणवान् बनाना याने क्या ?
दवाईयों के उपर Expiry Date होती है। उसका अर्थ यह है कि पहले वह जिवित थी और बादमें मर जायेगी। (Expire का अर्थ मरना-नष्ट होना है।)
अब दवाई में जीवित होना क्या और मरना क्या? विचार करने पर यह समझ सकतें हैं कि अपना कार्य करने में समर्थ होना यही दवाईके जीवंत होने का अर्थ है । और वह सामर्थ्य नष्ट होना यही उसकी मृत्यु है। तो मतलब यह हुआ कि जीवंतता और मृत्यु का अर्थ हमेशा प्राणोंसे संबंधित नहीं है। बिजली का तार भी जिवंत कहलाता है- जब बिजली का प्रवाह उसमें से बह रहा हो।
ऐसा ही प्रतिमाके लिये है। उसको प्राणवान बनाने के अर्थ है कि प्रत्यक्ष परमात्माके दर्शन-पूजनादि से जो फल मिलता है, वही फल देने का सामर्थ्य उसमें उत्पन्न करना। प्रतिष्ठा होने से अब यह साक्षात् परमात्मा है, ऐसे परिणाम दर्शन-पूजा करनेवाले के मनमें उत्पन्न होते है। परिणाम ही पूजनका फल देने में कारण बनता है।
___ इसी तरह प्रतिष्ठा में परमात्माको मोक्षमें से लाने की कोई बात नहीं है । अपितु स्थापित करने की बात है।
इसके विस्तृत विवरण के लिये देखिए षोडशक ग्रंथ - हरिभद्रसूरि म.सा. प्रश्न : यदि परमात्माकी भक्ति करनी ही है तो परमात्मा के चरणोमें धन रख
दो। जल-फूल की क्या जरुरत है ? उत्तर : घर पर भोजन के लिये आमंत्रित मेहमान की थाली में १०० रु. की नोट रख देना यह स्वागत है, या अनेक प्रकार के पकवान आदि भोजन बनाकर देना स्वागत है ?
भक्ति विविध प्रकारके द्रव्यों से बढ़ती है।
साधु संत गोचरी के लिये पधारें हो, तब भी जितनी ज्यादा चीज सूझती हो, जितनी ज्यादा चीज वेरते है, उतना भक्तिभाव बढता है , आनंद बढता है, यह अनुभव सभी को है।
उसी तरह परमात्माकी जल-चंदन-पुष्प-धूप-दीप-नैवेद्य-फल-नृत्य आदि विविध
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