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________________ [ 60 ] उक्त दोनों सूत्रों में अनेक मुनि शत्रुजय आदि पर्बत (तीथ) पर पधार के सथारा किया है। यह निमित्त कारण आप को भी अवश्य मानना ही पड़गा। (1) अन्तगड सूत्र वर्ग 3 अ० 8 सुलसा गाथा पतणी हिरणं गमेषी देवको प्रतिमा पूजने से देव की हो अाराधना हुई है । वैसे ही जिन प्रतिमा पूजने से जिनेन्द्र देवों की आराधना होती है। (पूर्वरक्ष) अजी ! उन्होंने तो लौविक खाते पूजी है । (उत्तर पक्ष) प्रिय ! लौकिक देव की मूर्ति लौकिक खाते पूज के अपना कार्य कर लिया, तो लोकोत र कार्य सिद्ध क्यों नहीं होवे ? अपितु अवश्य होवे । (2) वर्ग 6 आ 3 सुदर्शन सेठ श्रावक ने प्रतिमा पूजी है । (व्हाया कय बलिकामा) यह गणधरों का वचन है,अस्तु ।।10।। प्रश्न व्याकरण पहिले संवर,पूजा हिसा नामजी। प्रतिमावैयावच्च त्रीजे संवर, करे मुनि गुणधामनी । प्रतिमा. ॥११॥ अर्थ - सूत्र प्रश्न व्याकरण अ० 6 मूल सूत्र (पूया 57) टीका-- (भाक्तो देव पूजा आयतनं गणानामाश्रयः) टब्वार्थ-भावथकी देवने पूजवो ते दया ।। 57 ।। भावार्थ-अहिंसा याने दया के 60 नाम हैं । जिनमें 57 वां नाम देव पूजा है । उक्त सूत्र अ० 8 में साधु प्रतिमा की वैयावच्च करे है । मूल पाठ केरिसए पुणाइ आराहए वमिणं जे से उहि भत्तपाणसंगहणदाणकुसले अच्चंतबाल दुब्बलगिलाण बुड खमगे पव
SR No.006134
Book TitleGayavar Vilas Arthat 32 Sutro Me Murtisiddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukanraj S Porwal
Publication Year1999
Total Pages112
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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