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त्ति आयरिय उचज्झाए सेहे साहम्मिए तवस्सो कुलगणसंघचेइ यीय निज्जरही वेयावच्चै अणिस्सियं दसविहं बहुविहि करेइ
अर्थ-शिष्य पूछता है "हे भगवन् ! कैसा साधु तीसरा व्रत आराधे ? गुरु कहते हैं . जा साधु वस्त्र तथा भातपाणी यथोक्तविधि से लेना और यथोक्तविधि से आचार्यादि को देना तिन में कुशल होवे सो साधु तीसरा व्रत अाराधे । अत्यंत बाल ( 1 ) शक्तिहीन ( 2 ) रोगी (3) वृद्ध (4) मास क्षमणादि करने वाला (5) प्रवर्तक (6) आचार्य (7) उपाध्याय ( 8 ) नयादीक्षित शिष्य (9) सार्मिक ( 10 ) तपस्वी ( 11 ) कुल-चान्द्रादिक ( 12 ) गण-कुल का समुदाय - कोटीकादिक ( 13 ) संघ कुलगण का समुदाय चतुर्विध संघ ( 14 ) और चैत्य-जिन प्रतिमा इनको जो अर्थ तिन में निर्जरा का अर्थी साधु कर्मक्षय वांछता हुवा यश मानादिक की अपेक्षा बिना दस प्रकार से तथा बहुविधि से वैयावच्च करै, सो साधु तीसरा व्रत आराधे । इसी में (चेइयठे निज्जरत्यी) इसका अर्थ टीकाकार श्रीअभयसूरि (चैत्यानि जिनप्रतिमाएतासांबोर्थःप्रयोजन स तथा तत्र स निर्जरार्थी कर्मक्षयकामः वैयावृत्त्यं,)
इस पर (ए. पी.) ने प्रश्न व्याकरण के पांचवें अध्ययन का पाठ (चेइयाणि वणसडो) उक्त सूत्र अध्ययन 10 का पाठ (भवण तोरण चेइय देवकुल सभा पवाइति) यह दोनों पाठ से (चैत्य) का अर्थ प्रतिमा किया है और तीजा संवरद्वार में [चैत्व] अर्थ ज्ञान किया है। वाचक वर्ग ! स्वय विचार लेवें कि इन लोगों की कितनी न्याय बुद्धि है ? क्या जिनेन्द्र देवों की प्रतिमा