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समीक्षा : संघ भोजन या साधर्मियों के भोजन को स्थानकवासी लोग जीव हिंसा - विराधना होने के कारण हेय और पाप समझते हैं। तो फिर हरी सब्जी बनाने न बनाने से क्या फर्क पड़ता है? सादगीपूर्ण ढंग से भी संघ भोजन करवाने पर हिंसा तो होती ही है, और जहाँ हिंसा होती है वहाँ जिनाज्ञा नहीं है, वह धर्म नहीं है? फिर तो अधर्म की 'सम्यगदर्शन' पत्रिका अनुमोदना क्यों करती है? ऐसा लगता है ही 'सम्यग्दर्शन' पत्रिका 'मिथ्यादृष्टि' पत्रिका है ? आगम आज्ञा से विपरित लिखने वाली पत्रिका है।
यथा
श्री पितलिया जी भी इसे मिथ्यात्व की संज्ञा देते ही हैं, .... धार्मिक प्रयोजनों के लिए हिंसा करना यह दुर्लभ बोधि का कारण है, धर्म के लिए हिंसा करने वाला सम्यग्कत्व प्राप्ति से दूर चला जाता है । .' (सम्यग्दर्शन पृ. 165, 5-3-96) खैर, ऐसी तो बहुत सी हिंसामय प्रवृत्तियों को अनुमोदनाप्रशंसा इस आनागमिक 'सम्यग्दर्शन' पत्र में की गयी है। जैसे कि 'दीक्षा के प्रसंग पर जय-जय के नाद पुकारना, दीक्षा के अवसर पर गीत-संगीत को गाना-बजाना, महा भिनिष्क्रमण का जुलूस निकालना, दीक्षा पत्रिका छपवाना इत्यादि । यथा :
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. दीक्षार्थिनी बहन वेश परिवर्तन कर दीक्षा पण्डाल में जयजयकारों के बीच उपस्थित हुई । पृ. 192 ।
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क्या जयजयकारों के नाद से वायुकाय जीवों की हिंसा नही हुई? फिर ". ... बालोतरा श्री संघ द्वारा दोनों दीक्षार्थी बन्धुओं का माल्यार्पण कर शाल ओढाकर अभिनन्दन - स्वागत भी किया गया । और गीत-संगीत एवं अपने भाव व्यक्त किये गये ॥ पृ. 191। ....
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