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कुछ बातें हम पूर्व में बता चुके हैं .... यहां भी 'सम्यग्दर्शन' मासिक के सम्पादक श्री नेमिचन्दजी बांठिया की कुछ अप्रमाणिक, अविश्वसनीय तथा परस्पर विरोध युक्त असंगत बातें देख लेवें, वे लिखते हैं कि - '...... हम तो जिनसे सहमत हैं, उन्हें हीसम्यग्दर्शन में स्थान देते हैं। .....' (पृ. 8, दि. 5-12-95)
फिर पृ. 7 पर लिखते हैं कि -'...............सम्यग्दर्शन' पत्रिका का सम्पादन करते समय 'आगम आज्ञा' को पूर्णतया ध्यान में रखा जाता है। .............." ____ फिर 80 वर्ष के वृद्ध सज्जन की मृत्यु पर लिखा कि'.......... आपआपके पीछे भरा-पूरा परिवार छोड़ गये हैं। .....'
(पृ. 66, दि. 5-1-96) 80 वर्ष की वृद्धा श्राविका के स्वर्गवास पर पृ. 137 (5-296) पर लिखा कि - '...... आप अपने पीछे सात पुत्रों का भरापूरा परिवार छोड़ गयी है।............'
समीक्षा : 'भरा पूरा परिवार छोड़ जाना' ऐसा लिखना हेय है या उपादेय? क्यों निर्ग्रन्थ प्रवचन प्रकाशन करने वाला 'सम्यग्दर्शन' पत्र भरा पूरा परिवार की अनुमोदना कर रहा है? क्या ऐसा करने की आगम आज्ञा है? क्या है न बेमेल बातें?
सम्पादकश्री पृ. 759, (5-11-95) पर लिखते हैं कि '........स्वामी वात्सल्य के जीमण करवाये आदिछहकाय के महा आरम्भ का उपदेश भगवान महावीर का निवृत्ति प्रधान परम पवित्र जैन धर्म दे सकता है? .....
फिर, एक दीक्षार्थी बहिन की दीक्षा के प्रसंग पर लिखा है कि (पृ. 164, 5-3-96)
.....साधर्मियों के भोजन की व्यवस्था अत्यन्त सादगी पूर्ण ढंग से थी। जिसमें हरी का सम्पूर्ण त्याग रखा गया ।....'
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