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पराये जीव का ? किसी जीव की हिंसा अधिकार आपको किसने दिया ?
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समीक्षा : फिर तो स्थानकवासी संतों और श्रावकों को उपाश्रय निर्माण, गाय को घास डालना, कबूतर को चुग्गा डालना, संघ- भोजन करवाना, समाधिमन्दिर निर्माण करना नहीं चाहिए। क्योंकि इन सभी कार्यों में पराये त्रस और स्थावर जीवों का समर्पण होता ही है ? किसी जीव की हिंसा का अधिकार आपको किसने दिया?
किन्तु आगे आप लिखते हैं कि " साधु- -सन्तों द्वारा (गुरुजनों के समाधि-मंदिर आदि एवं स्थानक बनाने के लिए) सावद्य (हिंसामय-पाप-युक्त) उपदेश देना कल्पता नहीं है तथा सामान्यतः अधिकांश साधु इस प्रकार के उपदेश से अपने को पृथक रखते हैं, फिर भी कतिपय साधु श्रावकों को अपना सामाजिक दायित्व का बोध करने तथा गौरवमयी स्मृति को सुरक्षित रखने के लिए निर्माण कार्य की प्रेरणा देने लग गये हैं, फिर भी स्थानकवासी साधु यह साहस नहीं कर सकता है कि यह धर्म है।
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समीक्षा : श्री मनोहरलालजी कितनी असत्य बातें लिख रहे हैं। 'अधिकांश साधु स्थानक निर्माण और समाधि - मन्दिर बनाने से अपने को पृथक रखते हैं।' ऐसा उनका लिखना नितांत असत्य है । सत्य यह है प्रायः सभी स्थानकवासी साधु स्थानक तथा गुरुमन्दिर - निर्माण करने का उपदेश देते ही हैं। इस प्रकार के उपदेश के बिना यह निर्माण कार्य हो ही नहीं सकता।
श्री मनोहरलालजी दूसरी बात यह कहते हैं कि 'स्थानकवासी साधु कदापि यह नहीं कहते हैं कि स्थानक बनाना धर्म है।' इसके ऊपर हमारा प्रश्न है कि तो क्या स्थानकवासी संत ऐसा उपदेश देते हैं कि
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