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आपका धन दान करें, जो भी इसमें अधिक धनदान करेगा उसे अधिक पाप होगा और पाप से वह नरक में दुःख पायेगा।' फिर कोई समझदार इसमें धन देता क्या? ___पूना के इस सम्मेलन में सभी मूर्ति का विरोध करने वाले सन्तों की उपस्थिति में जड़ रंगीन कपड़े के टुकड़े को आकाश में फहराया था, जिसे 'शासन ध्वज' की संज्ञा दी गयी थी। इसको हवा में फहराने की बोली हुई थी, जिसकी तीन लाख रुपया देकर मद्रास के संघ ने अवसर लिया था। बाद में सभी ने ध्वज-वन्दन किया था तथा ध्वज-भक्ति का गीत भी गाया था। ध्वज-वन्दन करना यह मूर्ति-पूजा आस्था का ही एक प्रकार है।
तीर्थंकर भगवान की मूर्ति-पूजा का विरोध करने वाले कपड़े के जड़ ध्वज को वन्दन करते हैं यह कितना आश्चर्य? क्या ध्वज को हवा में फहराने में वायुकाय की हिंसा नहीं हुई? क्या ऐसी हिंसा में धर्म होता है? रुपये बोलकर ऐसी हिंसा करने वालों को कौन-सा धर्म हुआ? जिस प्रकार आप ध्वज-वन्दन मान्य करते हो, इसी प्रकार आपको मूर्ति-पूजा भी मान्य करनी ही चाहिए। ___श्री बांठिया जी! अब आप ही बताइये-गुण रहित जड़ ध्वजपूजा में स्थानकवासी सन्तों ने धर्म माना या नहीं? यह भी एक-दो सन्तों ने नहीं, किन्तु 300-400 सन्त-सतियों ने साथ में मिलकर। आप तो लिखते हैं कि '.................. अतएव स्पष्ट है कि मूर्ति-पूजा, जड़-पूजा और आरम्भ-समारम्भ में धर्म एवं आत्मकल्याण मानना जहर को अमृत और घोर अन्धकार को प्रकाशमय बताने जैसा है।'
('सम्यग्दर्शन' पृ. 12, दि. 5-1-96) समीक्षा:क्या ध्वज-वन्दनजड़-पूजानहीं है? मृत शरीरकोदर्शन-वंदन करना यह जड़पूजा नहीं है? गुरु
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