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समीक्षा : बांठिया जीगृहस्थ की फोटोसे सहमत हैं, इसलिए सम्यग्दर्शनपत्र में उसे स्थान देते हैं, किन्तु तीर्थंकर की फोटो वे नहीं छापते है। तो क्या आगम आज्ञा ऐसी है कि 'तीर्थकरकीतस्वीरछापना आरम्भसमारम्भ तथा पाप है, जबकि सांसारिक गृहस्थ की फोटो छापना यह धर्म है, इसमें हिंसा नहीं होती है?'
यह कितना अज्ञान है कि तीर्थंकर भगवान की मुर्ति-फोटो-तस्वीर का ही विरोध किया जाता है। यदि श्रीनेमिचन्दजीकोसत्य के प्रति थोड़ा-सा भी प्रेम है, तो फिर उन्हें अपने पत्र में तीर्थंकर की फोटो छापना प्रारम्भ कर देना चाहिए, वरना सभी प्रकार के फोटो छापना बन्द कर देना चाहिए। जड़-मृत शरीर के पीछे बसों को
लेकर क्यों जाना? पृ. 11, दि. 5-1-96 पर वे लिखते हैं कि '..... भगवान महावीर प्रभु का धर्म गुण-पूजक है, गुण रहित जड़-पूजा धर्म है ही नहीं।....'
समीक्षा : जब भी कोई स्थानकवासी सन्त या सतीजीस्वर्गवासी होते हैं, तो हजारों भक्त बस आदि वाहन द्वारा हिंसा कर वहाँ जाते हैं। अहमदनगर में आचार्य श्री आनन्दऋषिजी म. का स्वर्गवास हो गया तब हजारों लोग वहाँ बस, कार आदि द्वारा हिंसा करते हुए पहुंच गये। आचार्य श्री के मृत-जड़ शरीर में अब न तोज्ञान है, न दर्शन नचारित्र। फिरजड़शरीर के दर्शन के लिए क्यों जाना चाहिए था? क्या बस-कार आदिसे जाने में हिंसा रूप अधर्म नहीं हुआ? फिर क्यों गये?
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