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________________ गुणानुराग आसोज सुदि १ धर्मरूपी मूल्यवान लॉकर की चाबी परम कृपालु परमात्मा हमारा कल्याण कैसे हो? उसके लिए चाबियाँ बता रहे हैं । लॉकर में चाहे जितना धन भरा हुआ हो, किन्तु यदि उसकी चाबी न हो तो हम उसके भीतर रखे हुए हीरे-मोतीमाणिक को देख सकते हैं क्या? चाबी होना सफलता की निशानी है। महापुरुष भी धर्मरूपी मूल्यवान लोकर की चाबियाँ बता रहे हैं। एक वर्ग ऐसा है कि जो खाने-पीने और मौज-मस्ती में डूबा हुआ है, उनके लिए तो ईश्वर नाम का कोई तत्त्व है ही नहीं? अथवा पुण्य और पाप इसको भी जानने की इच्छा नहीं रखते हैं। वे तो रोटी, कपड़ा और मकान बस इन्हीं को प्राप्त करने में डूबे हुए हैं। रोटी कपड़ा और मकान मिल जाने पर भी सन्तोष को तो धारण करते ही नहीं हैं । उसको ही बढ़ाने में तमन्ना रखते हैं और पीछे की ओर मुड़कर देखते भी नहीं हैं । व्यापार में सोचे समझे बिना ही पूंजी लगा देते हैं और वह डूब जाती है, तो चिल्ला-चिल्ला कर रोने बैठते हैं । धन कमाना जोखिम है। धन आता है, तो मनुष्य की जान का जोखिम भी बढ़ता जाता है। फिर मनुष्य जैसे-तैसे उससे पिण्ड छुड़ाना चाहता है वैसे-वैसे वह गहरी खाई में उतरता जाता है। सुख की लालसा से संसार की रचना में फंसा तो दुःख की परम्परा भी खड़ी हो गई। तृषातुर बन्दर एक बन्दर जंगल में रहता था। उसको बहुत जोर की प्यास लगी। पानी की खोज में वह इधर-उधर भटकता रहा। वहाँ उसे किसी पत्थर में से पानी का झरना बहता हुआ दिखाई दिया। वह झरना वेग से बहता
SR No.006131
Book TitleGuru Vani Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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