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गुणानुराग
गुरुवाणी-३ सद्भाग्य से कैसे अच्छे साले मिले हैं ! राज्य प्राप्ति के लिए तो कितनी ही खून की नदियाँ बहानी पड़ती है जबकि बिना परिश्रम के उन्होंने सहर्ष हमें राज्य सौंपा। जबकि हमारा तो कोई हक नहीं बनता है। इतना ही नहीं किन्तु हम राज्य पालन में मस्त न हो जाएं इसलिए हमको तारने के लिए हमारे सामने आए। भांजा विचार करता है कि हमारे मामा लोग कितने अच्छे हैं । इस प्रकार तीनों व्यक्ति अपनी-अपनी दृष्टि से विचार करते हैं। बहनोई दोनों सालों के प्रति प्रशस्त विचार करता है। दोनों साले बहनोई का विचार करते हैं। पाँचों व्यक्ति एक दूसरे के गुणों का ही अवलोकन करते हैं । मार्ग में चलते-चलते ही उच्च गुणों की विचारधारा चढ़ती जाती है और गुणों की विचारधारा उनको कहाँ ले गई? क्षणमात्र में ही समस्त कर्मों को भस्मीभूत करके, उन्होंने निर्मल केवलज्ञान प्राप्त किया। गौतमस्वामी इन पाँचों को साथ में लेकर भगवान के पास आते हैं और पाँचों केवलज्ञानी केवलज्ञानियों की पर्षदा की ओर मुड़ते हैं। उसी समय गौतमस्वामी बोलते हैं - अरे, इस तरफ कहाँ जा रहे हो? यह तो केवलियों की पर्षदा है। तुम्हें तो उस तरफ बैठना चाहिए। उस समय भगवान् कहते हैं - हे गौतम ! केवलज्ञानियों की आशातना मत करो। इन्हें केवलज्ञान हो गया है। गौतमस्वामी आश्चर्यमुग्ध एवं चौंककर बोल उठते हैं - हे भगवन् ! इन्होंने अभी तो दीक्षा ग्रहण की है, इस थोड़े से समय में ही इन्हें केवलज्ञान हो गया....! हाँ .... गुणानुराग से ये आत्माएं तर गईं।
पहलवान बनने के लिए अखाड़े हैं। धनवान बनने के लिए दुकानें हैं। भाग्यवान बनने के लिए लॉटरियाँ हैं। भगवान् बनने के लिए मन्दिर हैं।