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________________ गुरुवाणी - ३ गुणानुराग ७१ 1 को कहता है - भाई ! तुम राज्य को संभालो और मुझे दीक्षा की आज्ञा दो । उत्तर में महाशाल कहता है - भाई ! तुम राज्य संभालो और मुझे आज्ञा दो। इस प्रकार दोनों के बीच में संयम हेतु खेंचातानी होती है । प्राय: कर राज्य ग्रहण हेतु झगड़े होते हैं जबकि यहाँ राज्य छोड़ने का झगड़ा चल रहा है। अन्त में मध्यम मार्ग निकालते हैं। स्वयं की एक बहन थी। उसका एक पुत्र था। दोनों बहन, बहनोई और भांजे को बुलाते हैं । स्वयं की भावना व्यक्त करते हैं। भांजा और बहनोई राज्य को संभालने की स्वीकृति देते हैं और दोनों भाई शाल और महाशाल महामहोत्सवपूर्वक दीक्षा ग्रहण करते हैं। बहुत ही सुन्दर आराधना करते हुए विचरण करते हैं । गुणानुराग से केवलज्ञान प्राप्त हुआ I बहुत समय के पश्चात् विचरण करते हुए वे अपनी नगरी के समीप पहुंचे। शाल और महाशाल भगवान से विनंती करते हैं कि भगवन् आप आज्ञा दें तो हम निकट में रही हुई हमारी नगरी में जाएं। भगवान गौतमस्वामी को आदेश देते हैं । गौतमस्वामी दोनों को लेकर उस नगरी जाते हैं। प्रजा अपने भूतपूर्व राजा को देखकर हर्ष से पागल हो जाती है । गौतमस्वामी देशना देते हैं। संसार की असारता का स्वरूप समझाते 1 हैं । बहन, बहनोई और भांजे पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। तीनों ही संयम ग्रहण करने की भावना व्यक्त करते हैं । गौतम स्वामी के पास वे तीनों संयम ग्रहण करते हैं । सपरिवार गौतमस्वामी के साथ वापस लौटते हैं । मार्ग में शाल, महाशाल, बहन, बहनोई और भांजे के बारे में विचार करते हैं कि ये लोग कितने अच्छे हैं कि जिन्होंने हमारे दीक्षा ग्रहण करने मार्ग को सुगम बना दिया। प्रपंचो से रचे-पचे राज्य को स्वीकार करके हमें मुक्त कर दिया ! इन अहोभावों से उनको नमस्कार करते हैं । मन में उन्हीं के सद्गुणों का विचार करते हैं । इस ओर बहन विचार करती है - मेरे दोनों भाई कितने अच्छे हैं? बहन का विवाह करने के बाद उसका पीहर में क्या अधिकार होता है? तब भी उन्होंने अपना सम्पूर्ण राज्य हमें सौंप दिया ! इनकी कैसी उदारता है ! बहनोई विचार करता है कि मुझे
SR No.006131
Book TitleGuru Vani Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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