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गुणानुराग
गुरुवाणी-३ १. सोता :- कितना ही सुन्दर प्रवचन चल रहा हो तब भी मीठी नींद लेते हैं। ऐसा लगता है मानो घर से कण्टाल कर, दुःखी होकर आए हों, उपाश्रय में ठण्डा पवन आता हो। और भाई साहब निश्चिन्त होकर झपकी लेते हों ऐसे श्रोताओं पर वाणी का क्या प्रभाव होगा?
एक सेठ प्रतिदिन व्याख्यान में आकर आगे बैठता था और झपकीयाँ लेता था। एक बार महाराज ने पूछा - सेठ क्या आप सो रहे हो? सेठ एकदम चौंककर बोले - नहीं, नहीं, साहेब मैं तो जाग रहा हूँ न! उंघते हुए भी कहते हैं कि मैं जाग रहा हूँ। मनुष्य सदा खुद का बचाव करता है। भूल को स्वीकार करने में उसे लघुता मालुम होती है। इसीलिए तो वह भटक रहा है। उत्तर देकर सेठ पुनः झौंके खाने लगे। महाराज भी उसके गुरु थे, अतः महाराज ने कुछ देर बार पुनः पूछा - सेठ, जी रहे हो? नहीं नहीं साहेब, सारी सभा खड़खड़ाहट की हंसी से गूंज उठी। उस समय सेठ को लगा की मैंने क्या जवाब दे दिया? ऐसे मनुष्यों पर व्याख्यान का क्या प्रभाव पड़ सकता है?
२. सरोता :- सरोता अर्थात् सुपारी काटने का औजार। कितने ही मनुष्य सरोते के समान काटने का ही काम करते हैं। वक्ता के दोषों को ही ढूंढते रहते हैं। वाणी में क्या दोष है इस दोषदृष्टि वालों पर वक्ता के वाणी का कोई प्रभाव नहीं पड़ सकता।
३.श्रोता :- श्रोतस् अर्थात् कान। सच्चा श्रोता वही होता है जो कान लगाकर ध्यानपूर्वक सुनता है। कान और प्राणों से सुनने वाला ही ये शाल-महाशाल और शालीभद्र आदि जैसे संसार सागर को तर गये। बहुत से लोगों को सुनना तो अच्छा लगता है किन्तु वे उसे आचरण में नहीं ले पाते। आचरण के बिना सब कुछ व्यर्थ है। संयम हेतु आपाधापी
शाल-महाशाल ने देशना सुनी और तत्काल ही आचरण में लेना प्रारम्भ किया। दोनों भाई संसार छोड़ने की बात करते हैं। शाल, महाशाल