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गुरुवाणी-३
गुणानुराग शाल-महाशाल
शाल और महाशाल नाम के दो भाई थे। दोनों भाईयों में प्रगाढ़ प्रेम था। एक राजा था और दूसरा युवराज। न्यायनीति से राज्य का संचालन करते थे, प्रजाप्रिय थे। प्रजा उनको देवतां के समान समझती थी। वे दोनों भी प्रजा के सुख में सुखी और दुःख में दुःखी होते। दोनों भाईयों की सुन्दर जोड़ी थी। एक समय भगवान महावीर विचरण करते हुए वहाँ पधारते हैं। शाल-महाशाल की नगरी पृष्ठचम्पा निकट में होने के कारण भगवान महावीर गौतम स्वामी को आदेश देते हैं कि तुम पृष्ठचम्पा नगरी जाओ। गुरु गौतम पृष्ठचम्पा पधारते हैं। उनके आगमन से शाल-महाशाल और नगर निवासी हर्ष से पागल हो जाते हैं। साक्षात् कल्पवृक्ष के समान गौतमस्वामी हमारे नगर में पधारे हैं। गुरु की देशना सुनने के लिए हजारों लोग जाते हैं। गौतमस्वामीजी देशना देते हैं। संसार की असारता को समझाते हैं। शास्त्रों में संसार का दूसरा नाम 'मार' आता है, अर्थात् जहाँ जीव को सतत मार ही पड़ती रहती है। फुटबाल खेलते हुए फुटबाल की स्थिति आपने देखी है न! एक मनुष्य उसे लात मारता है। सामने वाला मनुष्य भी उसे लात मारता है। लातें खा-खाकर वह चोट खाता ही रहता है। उसी प्रकार मनुष्य भी घर में औरत-पुत्र और नौकरों की तथा कार्यालय में सेठ अथवा साहेब लोगों की वाणी रूपी लातें खाखाकर ही जीता है। ऐसे संसार में परमात्मा के द्वारा बताया हुआ मार्ग ही सच्चा है। उसी से इस आत्मा का कल्याण है। गौतम स्वामी की देशना सुनकर दोनों भाईयों ने संसार के असार स्वरूप को समझा, अनुभव किया। इन दोनों की आत्माएं कैसी लघुकर्मी थी। एक देशना मात्र से राज्य वैभव के सुख उन्हें असार प्रतीत हुए! और तुम्हें हजारों बार देशना सुनने पर भी अशान्ति से परिपूर्ण तुम्हारे ये सुख, मीठे मधु के समान लगते हैं। श्रोताओं के तीन प्रकार
शास्त्र में तीन प्रकार के श्रोता बताए गये हैं - १. सोता २. सरोता ३. श्रोता।