SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 9
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७३ ७७ मध्यस्थताः५१-५५ गुणानुराग: ७३-७९ * भीष्मपितामह ५२ * धर्मरूपी मूल्यवान लॉकर की चाबी ७३ * बड़े मुल्ला का ताबीज ५३ /* तृषातुर बन्दर * मध्यस्थ गुण- सोमवसु * लोभ मेरे पाप से! ब्राह्मण की कथा ५३ /* भगवान के साथ भी माया! * धर्म कहाँ से प्राप्त किया जाए ५४ * पहले शस्त्रविराम मध्यस्थताः- ५६-५९ /* गुणानुराग का तीसरा चरण ७६ * सुख का आभास ५६ * हम दो हमारे दो * धर्म की शोध में निकला * सन्त और वेश्या का दृष्टान्त हुआ ब्राह्मण ५६ सत्कथाः ८०-८४ * सत्य की शोध करने वाला ब्राह्मण ५७ * दया पात्र कौन? * गुरु की खोज में घूमता * चार विकथाएँ-१. स्त्री कथा हुआ ब्राह्मण ५८/* २. भक्त कथा गुणानुरागी:- ६०-६५ /* ३. देश कथा * चार दुर्लभ वस्तुएं ६० * ४. राज कथा * बारहवाँ गुण - गुणानुरागी ६१ * अजब अलौकिक शक्ति! ८३ * गुणानुराग का प्रथम चरण ६१ सुपक्ष से युक्तः- ८५* गुणानुराग का दूसरा चरण ६२ /* डाकू से सन्त किसने बनाया? ८५ * गुरु दत्तात्रेय ६३ * वृद्धाश्रम की व्यथा ८६ * सबसे अधिक चतुर-सोक्रेटिस ६३ /* वाणी का चमत्कार! * धूप की पूजा किसलिए? ६४ अंधेरे में भटकता जगतः-९०-९६ * परोपकारी स्वामी रामतीर्थ ६४/* सुदीर्घदर्शी * लक्ष्मी के तीन रूप ६४/* इस लोक का धन कहाँ तक? गुणानुरागः ६६-७२ /* साथ क्या आएगा? * सुख की चाबी ६६ * दृष्टि रूपी चश्मा * गुणानुरागी-अब्राहम लिंकन ६६ * आज का सुधरा हुआ? मानव * डाकू में से संत ६७/* पश्चिमी अनुकरण * शाल-महाशाल ६८ * लॉर्ड कर्जन कट * श्रोताओं के तीन प्रकार ६९ * राम रक्षक है तो कौन * संयम हेतु आपाधापी ७० क्या बिगाड़ेगा? * गुणानुराग से केवलज्ञान प्राप्त हुआ ७१ * किसकी रुचि?
SR No.006131
Book TitleGuru Vani Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy