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________________ * * * * * * * * * दीर्घ दृष्टिः ९७-१०२ * दर्शन की अपूर्व शक्ति * लिखा हुआ लेख मिथ्या. (पिता-पुत्र की कथा) १२७ __नहीं होता है ९७ * दर्शन की तन्मयता* कर्म राजा का झटका ९८ (वृद्धा माँ की कथा) १२९ * खोखला धर्म १००/* जिन के ध्यान से जिन * स्थान रखने के लिए धर्म १०१ * सिद्धपद १३० * धन को सम्मान देती दुनिया- * सिद्ध का सुख कैसा? (सेठ की कथा) १०१ * सुख की व्याख्या १३२ दीर्घ दृष्टिः- १०३-१०८ /* सिद्ध का वर्ण लाल क्यों? १३३ * छिलके वाला धान १०३ तीसरा पद आचार्य * छोटी बहू का चातुर्य १०४ पदः १३४-१४१ * पुण्य के चार भेद १०५ * शासन का दीपक १३५ * विशेषज्ञ १०६ * मानदेवसूरि महाराज १३६ * अन्ध श्रद्धालु मूर्ख की कथा १०६ / * कालिकाचार्य १३७ श्री सिद्धचक्र के * धर्म केवल विधि बन गया १३९ व्याख्यान:- १०९-११८ उपाध्याय-साधु* प्रथम पद १०९ दर्शनपदः-१ १४२-१५१ * प्रथम अरिहंत कैसे? १०९/* चौथा पद-नमो उवज्झायाणं १४२ * विचारधारा का पुण्य ११२/ * पाँचवाँ पद-नमो लोए * संसार एक समुद्र है ११४ सव्वसाहूणं १४३ * कामवासना के कारण ही * गुरु - यह तत्त्व है __पाप का मार्ग ११६ * छट्ठा पद-नमो दंसणस्स १४६ * मातृपितृभक्त श्रवण ११७/* समकित के भेद १४७ अरिहंत का नामः- ११९-१२५ * समकित के आभूषण । १४८ * मानवता बड़ा धर्म है ११९ * भक्ति तीन प्रकार की १५० * विचारों की प्रतिध्वनि दर्शन-ज्ञान-चारित्रः- १५२-१५८ (चन्दन का व्यापारी) १२१ * समकित का चौथा आभूषण १५२ * अरिहंत शब्द भी महान है १२३/ * नास्तिक को पाठ पढ़ाने । * व्यथा किस-किस की? १२४ वाला प्रधान १५२ वीतराग की वाणी और * तीर्थ सेवा १५३ दर्शनः- १२६-१३३ /* समकित के पाँच दूषण * भूखी प्यासी वृद्धा माँ की कथा १२६ * सांतवाँ पद-नमो नाणस्स १५५ * * * * १४५ १५४
SR No.006131
Book TitleGuru Vani Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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