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गुणानुराग
आसोज वदि अमावस
सुख की चाबी
धर्मरूपी रत्न को प्राप्त करने के लिए कैसे गुण होने चाहिए इस बात को शास्त्रकार हमें समझा रहे हैं। दर्पण में जैसा प्रतिबिम्ब पड़ता है वैसा ही गुणानुरागी के जीवन में सद्गुणों का प्रतिबिम्ब पड़ता है। भगवान भी वैसे ही मनुष्यों के प्रति प्रसन्न रहते हैं । जिस प्रकार बालक को खातापीता देखकर और आनन्द कल्लोल करता हुआ देखकर माता-पिता को जैसी प्रसन्नता होती है, उसी प्रकार प्रत्येक जीव को प्रेम से, अहोभाव से
और स्नेह से देखने वाला ही, धर्म की अच्छी तरह से आराधना कर सकता है। जगत् में छोटे से छोटा बनना जितना सहज है उतना ही महान् में महान् बनना भी सहज और सरल है। It is as easy to be great as to be small. चाबी अपने ही हाथ में है किन्तु उसे लगाने की प्रक्रिया का ज्ञान होना चाहिए। गुणानुराग वह चुम्बकीय चाबी है, जिससे गुणों का खजाना खुलता है। गुणानुरागी - अब्राहम लिंकन
अमेरिका के प्रेसिडेन्ट अब्राहम लिंकन की बात है। जब वे बालक थे, तब अत्यन्त गरीब थे। अभ्यास करने के लिए उनके पास में पाटी और कलम भी नहीं थी। किताबों के लिए पैसे भी नहीं थे। गणित ज्ञान के लिए लोहे की पट्टी पर धूल डालकर उसमें अंगुली से अंक लिखकर गिनती करते थे। ऐसी दयनीय स्थिति में भी उन्होंने शिक्षा प्राप्त की और स्वयं की दक्षता से आगे बढ़े। चुनाव का समय आया, वे स्वयं चुनाव में खड़े हुए, मन में शुभ विचार हैं, देश का भला करने की भावना है। विचार ही मनुष्य को ऊँचा बनाते हैं। अनेक मनुष्यों की मदद से वे