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गुणानुरागी
गुरुवाणी - ३
देते हैं । सूर्य का उदय होता है तो किसी को यह कहने की आवश्यकता नहीं होती कि सूर्य देव पधारे हैं। सूर्य का प्रकाश ही उसके आगमन की सूचना दे देता है।
धूप की पूजा किसलिए?
इस लोक में सुखी होने के लिए, समाधि मरण के लिए और सद्गति के लिए गुणों का अनुराग होना अत्यावश्यक है । हम मन्दिर में धूप की पूजा करते समय बोलते हैं - 'अमे धूपनी पूजा करिए रे, हो मन मान्या मोहनजी, "दुर्गंध अनादिनी हरीये रे हो मन मान्या मोहनजी ।' यह धूप पूजा हमारे मन में फैली हुई अनादिकालीन दुर्गंध जैसे असूया, ईर्ष्या, दम्भ आदि को दूर करने के लिए है, न कि सुगन्धित अगरबत्ती द्वारा धूप पूजा से मन्दिर की दुर्गन्ध दूर करने की है। परोपकारी स्वामी रामतीर्थ
स्वामी रामतीर्थ बहुत ही परोपकारी मानव थे । यह उस जमाने की बात है जब मनुष्य एक रूपये में अपना गुजारा करता था। एक महीने का वेतन तीस रूपये होना तो बहुत अधिक था । स्वामी रामतीर्थ को एक हजार रूपया वेतन मिलता था । उस समय के एक हजार आज तो तीनचार लाख रूपये के बराबर होते हैं । स्वामी स्वयं बड़े उदार दिल के थे। इतने अधिक रूपये आते तो वे सबसे पहले उसमें से घर खर्च के लिए कटौती करके शेष रकम दीन - अनाथों पर खर्च कर डालते थे । भोगविलास के पीछे एक पाई भी खर्च नहीं करते थे। आज देखते हैं कि प्रतिदिन लाखों रूपये भोग-विलास में नष्ट कर डालते हैं । आज पैसा बढ़ गया किन्तु उस पैसे की कीमत घट गई है। आज का मनुष्य पैसे के साथ पानी की तरह व्यवहार करता है ।
लक्ष्मी के तीन रूप
शास्त्रकार कहते हैं - लक्ष्मी के तीन रूप हैं। माता के समान, स्त्री के समान और दासी के समान । माता के समान जब लक्ष्मी घर में आती है,