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________________ गुणानुरागी आसोज वदि १४ चार दुर्लभ वस्तुएं परम कृपालु परमात्मा ने हमें संसार की असारता को समझाने के लिए और संसार जाल से मुक्त होने के लिए धर्म का मङ्गलमय मार्ग बताया है। यह जीवात्मा ८४ लाख जीवयोनियों में भटक रही है। जहाँ निरन्तर भ्रमण/भटकते रहते हो, उसी का नाम संसार है। एक योनि से दूसरी योनि में इस जीवात्मा ने अनंत बार भ्रमण किया। एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक घूम आया है। कीड़ा, मकोड़ा, मक्खी, मच्छर, डांस आदि समस्त योनियों में असंख्य बार घूम आया है। ऐसे सूक्ष्म जन्तुओं में से मानव जन्म मिलना कितना दुर्लभ है। मच्छर होने पर जहरी दवा का छिड़काव कर, माकड़ होने पर गर्म पानी डालकर हमको मार दिया होगा। प्रत्येक जन्म में कठोर वेदनाओं को भोग-भोग कर कर्मों का क्षय करके हमने इस मानव जन्म को प्राप्त किया है। इससे भी महत्वपूर्ण है कि हमें आर्य देश मिला। अमेरिका आदि देशों में जन्म न मिलकर इस धार्मिक देश में हमें जन्म मिला । जहाँ कदम-कदम पर माताजी का मन्दिर, महादेव का मन्दिर, जैन देरासर और कहीं स्थानक आदि कई धार्मिक स्थान देखने को मिलते हैं और गाँव-गाँव नंगे पैर चलकर धर्म का सन्देश सुनाने वाले सन्तों के दर्शन होते हैं। आर्य देश मिलने पर भी कसाई आदि नीच कुलों में हमारा जन्म न होकर, जैन कुल में अर्थात् उत्तम कुल में हमने जन्म लिया। इससे भी अधिक हमें सद्गुरु का सहयोग मिला, धर्म सुनने को मिला। धर्म श्रवण करने पर भी अनेक लोगों के जीवन में उसके प्रति रूचि नहीं होती। कदाचित् यदि उस धर्म के प्रति रूचि भी हो जाए, तो कितने ही व्यक्ति तो उसे अंगीकार भी नहीं करते.... आचरण में नहीं लाते। ऐसी दुर्लभ चीजें हमको सहज भाव से प्राप्त हुई है, तो हमें अब धर्म की साधना कर लेनी चाहिए।
SR No.006131
Book TitleGuru Vani Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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