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गुरुवाणी-३
मध्यस्थता सत्य है, किन्तु वह धर्म कहाँ से प्राप्त करें? कथाकार ने कहा - मीठा खाना, सुख पूर्वक सो जाना और लोगों में प्रिय होना, इन तीन बातों का रहस्य जिसके पास से जानने को प्राप्त हो वही तुझे सच्चा धर्म समझाएगा। इस वाक्यों का रहस्य प्राप्त करने के लिए वह ब्राह्मण गाँव-गाँव घूम रहा है। आगे क्या होगा यह अवसर पर देखेंगे।
___गुणानुरागी यानि दूसरों के गुणों का अनुरागी। दोषों में भी गुणों को देखने वाला। यह तभी सम्भव है जब वह स्वयं का अन्तर्निरीक्षण करता हो और वह भी सूक्ष्म दृष्टि से। लेकिन जो सिर्फ दूसरों का ही निरीक्षण करता हो और "मैं ही सर्वगुण सम्पन्न हूँ" ऐसी भ्रांति वाला मनुष्य सुखी/संतोषी हो ही नहीं सकता। गुणानुरागी यानि सुखी मनुष्य ।
गुणानुरागी का प्रथम चरण-सामने वाले व्यक्ति के गुणों को देखना और दोषों की उपेक्षा करना। दूसरा चरणगुणों की स्तवना करना पश्चात् स्वयं के जीवन में उन गुणों को उतारने की प्रवृत्ति करना। साथ ही स्वयं में जो कुछ भी गुण है उन्हें मलिन न होने दें, उनका विस्तार करें। तीसरा चरण- यदि कोई दूसरा व्यक्ति हमारे दोषों को बतलाए तो हमें आनंदपूर्वक उसे स्वीकार करना चाहिये।