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________________ गुरुवाणी-३ मध्यस्थता तुम्हारी जय हो, न्याय तुम्हारे पक्ष में है। जीवन में ऐसा ही मध्यस्थ भाव होना चाहिए। किसी का भी पक्षपात नहीं करना चाहिए। बड़ा मुल्ला का ताबीज कोई भी धर्म जब उत्पन्न होता है, तब देशकाल को लेकर नियमों की रचना भी होती है। काल बदलने पर उन नियमों में भी परिवर्तन करना चाहिए। सत्य समझ में आने पर मनुष्य को आग्रह छोड़ देना चाहिए। बड़ा मुल्ला नाम के एक धर्म गुरु थे। मुस्लिम लोग उनके पास जाते थे। भक्तगण उनको साक्षात् भगवान मानते थे। ये मुल्लाजी लोगों को ताबीज बनाकर देते थे, उसके बदले में पैसे लेते थे....अन्ध श्रद्धालु भक्त मुल्ला से यह ताबीज मिलने पर स्वर्ग मिल गया हो, ऐसा मानते थे। ताबीज में मुल्लाजी लिखकर देते थे - हे अल्ला ! इस अमुक भाई को आप अच्छे से अच्छा बंगला दें, एक अच्छी फिएट कार दें। इसकी इच्छानुसार इसे अन्य सभी सुविधाएं भी प्रदान करें आदि। ताबीज मिल गया अर्थात् स्वर्ग मिल गया.... ऐसे लोग सत्य धर्म को कैसे प्राप्त कर सकते हैं। हिंसा को ही धर्म मानने वालों का एक वर्ग है । उनको हम हर दृष्टि से समझाएं, तो भी वे हिंसा को ही धर्म स्वरूप मानते हैं क्योंकि तटस्थता के अभाव में हिंसा को भी छोड़ नहीं सकते.... तटस्थ मनुष्य धर्म को प्राप्त कर कहाँ तक उन्नति करता है, उस पर एक ब्राह्मण का दृष्टान्त आता है। मध्यस्थ गुण - सोमवसु ब्राह्मण की कथा कौशाम्भी नगर में सोमवसु नाम का एक ब्राह्मण रहता था। वह अत्यन्त ही दीन-हीन गरीब था। किसी भी कार्य में उसको सफलता प्राप्त नहीं होती थी। वह किसी भी प्रकार का धंधा करता था तो वह उल्टा ही पड़ता था। इस कारण से वह अत्यन्त उद्विग्न हो गया। संसार में कर्म की प्रबलता इतनी अधिक है कि मनुष्य जैसा करता है, वैसा ही फल प्राप्त करता है। पुण्य होता है तो बिना मेहनत ही अखूट सम्पत्ति प्राप्त कर लेता
SR No.006131
Book TitleGuru Vani Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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