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________________ मध्यस्थता आसोज वदि ११ - शास्त्रकार महाराज चिन्तामणिरत्न का दृष्टान्त देते हुए कहते हैंचिन्तामणि रत्न हमारे पास कब तक रह सकता है और कब हमारी इच्छाओं की पूर्ति कर सकता है? जो सद्गुण रूपी वैभव हो तो यह रत्न स्थाई रह सकता है। नहीं तो पहले रबारी की तरह मांगने पर भी कुछ नहीं मिलता है और वह उसे फेंक देता है। आज हमारी स्थिति इसी प्रकार की है। धर्म की आराधना किए बिना ही प्रतिदिन भीख मांगने वाले भिखारी के समान हम धर्म के पास से बारम्बार याचना किया करते हैं .... किन्तु इच्छित वस्तु नहीं मिलने पर हम अपनी बुद्धि के अनुसार तराजु पर धर्म की तुलना करते है और कहते हैं कि कलयुग आया है.... धर्म करते हैं, फिर भी कुछ फल नहीं मिलता । धर्म में भी किसी प्रकार का सत्व / शक्ति नहीं रही है। हम जरा गहराई में उतरकर सोचें और आज के धर्मी कहलाने वालों के घर में झांककर देखें, तो घर में एक मात्र अधर्म ही देखने को मिलता है। मानों समस्त अधर्मी लोग ही इकट्ठे हुए हों.... घर में मातापिता का तिरस्कार करते हैं, व्यसन में आकण्ठ डूबे हुए होते हैं। किसी ' की भी मान्यता / नियम का पालन नहीं करते हैं। ऐसे परिवारों में धर्म कैसे टिक सकता है । चिन्तामणि रत्न के समान पुण्यशाली को ही धर्म रूपी रत्न की प्राप्ति होती है। धर्म रत्न को प्राप्त करने के लिए पहले योग्यता प्राप्त करनी होती है। धर्म को पाने के लिए श्रावक के २१ गुण पूज्य शान्तिसूरिजी महाराज धर्मरत्न प्रकरण में बता रहे हैं । हम १० गुणों का विवेचन पूर्व में कर चुके हैं। अब धर्म को प्राप्त करने योग्य श्रावक का ११ वाँ गुण मध्यस्थता है, उसका विवेचन कर रहे हैं।
SR No.006131
Book TitleGuru Vani Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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