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________________ गुरुवाणी-३ मानव जीवन की सार्थकता किसमें है? ____४९ नहीं मिलता। चना, मुरमुरा आदि लेने हो तो रूपये-दो रूपये काम में आ सकते हैं। हीरा-मोती खरीदने के लिए तो अमूल्य सम्पत्ति चाहिए। रूपये पैसों की सम्पत्ति से धर्म हाथ में नहीं आता है। रूपये-पैसे तो अनेकों के पास होते हैं, किन्तु धर्म भी उसके अधीन है, ऐसा मानना मूर्खता है। रत्न को प्राप्त करने वाला युवक धर्म रूपी रत्न को खरीदने के लिए गुणरूपी सम्पत्ति चाहिए। मनुष्य ऐसा मानता है कि धन से सबकुछ खरीदा जा सकता है। महोत्सव किया, मन्दिर बनवाया, संघ निकाला, धन को पानी की तरह खर्च करने से उसके हाथ में धर्म आ गया हो, यह मानना हितकारक नहीं है। यह धर्म तो चिन्तामणि रत्न के समान है। गुणरूपी जवाहरात जिसके पास होगा वही इसे प्राप्त कर सकता है। पहले रबारी के पास चिन्तामणि रत्न था, किन्तु वह उस रत्न की कीमत आंक नहीं सकता था। जयदेव ने रत्न की आराधना विधि उस रबारी को समझाई किन्तु वह रत्न उसके पास सुरक्षित रहेगा ऐसा प्रतीत नहीं हुआ। कुछ समय तक जयदेव भेड़ बकरियों के झुंड के पीछे-पीछे चला। उसने सोचा की देखू तो सही यह रबारी उस रत्न की आराधना किस प्रकार करता है? रबारी तो रत्न को कहता है - अरे हो चिन्तामणि रत्न, मेरी एक बात ध्यान से सुन ले। रास्ते भर वह बोलता रहा किन्तु रत्न ने कोई उत्तर नहीं दिया। अन्त में थककर उस रबारी ने कहा - तू मेरी बात नहीं सुनता है तो कोई बात नहीं। अब मेरी बात भी ध्यान पूर्वक सुन ले और मुझे तत्काल ही जवाब दे। रबारी ने कहा - बोल एक हाथ का मन्दिर और चार हाथ का देव, इसका उत्तर क्या है? रत्न कुछ बोलता नहीं। यह तो मेरी बात सुनता भी नहीं है, हुंकारा भी नहीं भरता है। यह सत्य है कि उस आदमी ने मुझे ठगने के लिए यह मार्ग बताया है। मैं तो एक वक्त भी भूखा नहीं रह सकता, वह तो तीन दिन भूखा रखकर मुझे मारना ही चाहता है। खाये बिना तो मेरी
SR No.006131
Book TitleGuru Vani Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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