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________________ कहा कि चौमासे के व्याख्यानों का संग्रह पुस्तक के रूप में शीघ्र ही प्रकाशित किए जाएँ और इसके प्रकाशन का सारा लाभ हम दोनों लेंगे। लाभार्थी के सहयोग एवं पूज्य गुरुदेव की कृपा से ये व्याख्यान पुस्तक के रूप में प्रकाशित किए गए। यह काम मेरे लिए अत्यन्त कठिन होते हुए भी पूज्य तारक गुरुदेव की कृपा और संघमाता शतवर्षाधिकायु पूज्या माताजी श्रीमनोहर श्रीजी महाराज सा. (पूज्य जम्बूविजयजी म. सा. की सांसारिक मातुश्री) तथा पूज्य सेवाभावी गुरुदेव श्री सूर्यप्रभाश्रीजी म. सा. आदि का शुभाशीष ही मेरा प्रेरक बल रहा है। वर्तमान में संयम जीवन की अप्रमत्त भाव से आराधना करने वाले मेरे सांसारिक पूज्य पिता श्री धर्मघोषविजयजी महाराज तथा मातुश्री आत्मदर्शनाश्रीजी म. सा. के स्रेहाशीर्वाद से भी मुझे सम्बल मिला। पूज्य गुरुदेव ने अन्तिम संशोधन पर दृष्टि डालकर त्रुटियों को दूर किया। उसके लिए मैं उनकी अत्यन्त ऋणी हूँ तथा शिष्य परिवार ने संशोधन में जो सहयोग दिया है उसके लिए भी मैं उनका आभार मानती हूँ। पूज्य गुरुदेव के विशुद्ध विचार लोगों के हृदय तक पहुँचाने के लिए प्रेरणा देने वाले और पुस्तक मुद्रण की समस्त जिम्मेदारी लेने वाले श्री अजयभाई का भी मैं बहुत-बहुत आभार मानती हूँ। अन्त में यह पुस्तक आज के युवावर्ग को भी सत्य पथ दिखाने के लिए और अनेक भव्यों को इस राह की ओर चलने के लिए प्रेरित करे यही मेरी मनोकामना है। वीतराग की आज्ञा के विरुद्ध कुछ लिखने में आया हो तो वाचकगण क्षमा करें। यह पुस्तक वात्सल्यमयी गुरुमाता के पवित्र चरण कमलों में समर्पित करके मैं यत् किन्चित् रूप से ऋण मुक्त बनने की वान्छा करती हूँ। कार्तिक वदि १२, सं. २०५३ नाना आसम्बिया (कच्छ) -मनोहरसूर्यशिशु
SR No.006131
Book TitleGuru Vani Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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