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________________ में चातुर्मास हेतु प्रवेश किया। छोटा होने पर भी मनोहारी और भक्तिभाव से पूरित इस ग्राम में कुलीनभाई मोरारजी गाला परिवार ने तथा कल्याणजी लालजी नन्दु परिवार ने चातुर्मास में साधर्मिक भक्ति का अत्यधिक लाभ लिया और स्वयं की लक्ष्मी को सार्थक किया । अट्ठारह अभिषेक के अर्न्तगत भगवान का तो कुछ ही कलशों के द्वारा ही अभिषेक किया किन्तु करुणा के सागर भगवान ने समग्र कच्छ की भूमि को कई गुणा कलशों से नहला दिया। ऐसे महापुरुष के पुनीत चरणों से कच्छ की धरती धन्य बनी, हरियाली बनी । केवल लोक ही नहीं अपितु पशु-पक्षी भी तृप्त हुए। कितने ही वर्षों से समग्र कच्छ के निवासियों ने ऐसी वर्षा की झड़ी देखी नहीं थी। जब भगवान ने पृथ्वी को हरियाली युक्त बनाया तब पूज्य गुरुदेव ने लोगों के हृदय को आर्द्र - आर्द्र कर दिया । चौमासे में पूज्यश्री ने पूज्य शान्तिसूरिजी महाराज विरचित धर्मरत्नप्नकरण नाम के सुन्दर ग्रन्थ पर व्याख्यान प्रारम्भ किया। उस ग्रन्थ में श्रावक के २१ गुणों का वर्णन आता है । सुन्दर और सरल शैली में श्रोताओं के हृदय में आर-पार उतर जाए ऐसा वर्णन पूज्य गुरुदेव ने किया। उसमें से ११ गुणों का वर्णन गुरुवाणी पुस्तक के प्रथम एवं द्वितीय भाग में आ गया है। शेष १० गुणों का वर्णन इस तृतीय भाग में दे रहे है। पूज्य गुरुदेव द्वारा भिन्न-भिन्न समय में तथा भिन्न-भिन्न स्थलों में दिये गये व्याख्यानों को मैंने उन-उन तिथियों में संकलित किया है। प्रारम्भ में धर्म कैसा होना चाहिए इसकी ओर संकेत किया और फिर गुणों का वर्णन किया है। ११ गुण निम्न हैं :- १ मध्यस्थ २ गुणानुरागी ३ सत्कथा ४ सुपक्ष से युक्त ५ विशेषज्ञ ६ सुदीर्घदर्शी ७ वृद्धानुग ८ विनीत ९ कृतज्ञ १० परहित चिन्तक ११ लब्धलक्ष्य | साथ ही नवपद, दीपावली और ज्ञानपंचमी के व्याख्यान का भी संकलन है । सचोट, सुन्दर और सरल शैली में जनता को आकर्षित करते हुए पूज्य गुरुदेव के प्रवचन पहले और दूसरे भाग में प्रकाशित होने पर लोगों की अत्यधिक मांग बढ़ गई। तीसरे भाग की भी अत्यधिक आतुरता से प्रतीक्षा होने लगी। इसी के साथ ही कुलीनभाई तथा कल्याणभाई ने भी
SR No.006131
Book TitleGuru Vani Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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